देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति में सरकार द्वारा की जा रही कथित देरी पर अवमानना की कार्यवाही की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1 नवंबर 2022 से कॉलेजियम द्वारा की गईं 70 सिफारिशें वर्तमान में सरकार के पास लंबित हैं. जब तक इनका समाधान नहीं हो जाता, हर 10 से 12 दिन में सुनवाई होगी.
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में कहा कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संविधान में ‘विश्वास की कमी’ दिखाकर, इसकी संस्था यानी सुप्रीम कोर्ट पर हमला कर संवैधानिक पदों पर रहने से ‘ख़ुद को अयोग्य’ कर लिया है.
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर व्यवस्था नहीं है. न्यायपालिका सक्षम उम्मीदवारों की योग्यता पर फैसला करने के लिहाज़ से बेहतर स्थिति में होती है, क्योंकि वहां उनके काम को सालों तक देखा जाता है.
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल की यह टिप्पणी केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमले कर रहे हों और उनके बीच ‘महाभारत’ चल रहा हो.
केंद्र और न्यायापालिका के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर चल रही खींचतान के बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि देश की सभी स्वतंत्र संस्थाओं पर ग़ैर-क़ानूनी रूप से क़ब्ज़ा करने के बाद अब ये लोग न्यायपालिका पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. जनता ऐसा कभी नहीं होने देगी.
क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ‘महाभारत’ हो रही है. वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस आरएस सोढ़ी ने क़ानून मंत्री द्वारा कॉलेजियम पर उनके बयान के समर्थन के बाद कहा कि उनके कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की बजाय सरकार और न्यायपालिका को इस मुद्दे पर परिपक्व बहस करनी चाहिए.
केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के विचारों का समर्थन किया है. जस्टिस सोढ़ी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान का अपहरण कर लिया. इसके बाद कहा कि वह न्यायाधीशों की नियुक्ति ख़ुद करेगा और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी.
गुरुवार को राज्यसभा में देश की अदालतों में लंबित मामलों के बारे में पूछे गए एक सवाल को केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने न्यायाधीशों के रिक्त पदों से जोड़ते हुए कहा कि यह मुद्दा जजों की नियुक्तियों के लिए 'कोई नई प्रणाली' लाए जाने तक हल नहीं होगा.
इस संबंध में आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी. लोकुर के एक साक्षात्कार का हवाला दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि 12 दिसंबर, 2018 को एक बैठक के दौरान हाईकोर्ट के दो मुख्य न्यायाधीशों को पदोन्नत करने का निर्णय उनके सेवानिवृत्त होने के बाद बदल दिया गया था. भारद्वाज ने बैठक में हुई चर्चा को सार्वजनिक करने की मांग की थी, जिसे ख़ारिज कर दिया गया.
जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा भेजे नामों को मंज़ूर करने में केंद्र की देरी से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक यह प्रणाली है, हमें इसे लागू करना होगा. पीठ ने अटॉर्नी जनरल से यह भी कहा कि कोर्ट द्वारा कॉलेजियम पर सरकार के लोगों की टिप्पणियों को उचित नहीं माना जा रहा है.
न्यायाधीशों की नियुक्ति के मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने के लक्ष्य से सरकार द्वारा लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) क़ानून को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ख़ारिज कर दिया था. केंद्र की प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है, जब न्यायाधीशों की नियुक्ति की को लेकर न्यायपालिका के साथ उसका गतिरोध जारी है.
संविधान दिवस के उपलक्ष्य में हुए एक कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कॉलेजियम के सभी न्यायाधीश संविधान को लागू करने वाले वफ़ादार सैनिक हैं. जब हम ख़ामियों की बात करते हैं, तो हमारा समाधान है- मौजूदा व्यवस्था के भीतर काम करना.
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि कोई भी यह नहीं कह सकता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली सबसे उत्तम प्रणाली है, लेकिन इस प्रणाली में सुधार किया जा सकता है जैसा कि प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में उल्लेख किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 57.51 लाख से अधिक लंबित मामलों में 54 प्रतिशत मामले पांच उच्च न्यायालयों- इलाहाबाद, पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास, बॉम्बे और राजस्थान में हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के डेटा के अनुसार, 56.4 प्रतिशत लंबित मामले पिछले पांच वर्षों के दौरान मामले दायर किए गए हैं, जबकि 40 प्रतिशत लंबित मामले 5 से 20 साल पहले दर्ज किए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए समयसीमा पर ज़ोर देते हुए ऐसे उच्च न्यायालयों को लेकर चिंता व्यक्त की, जहां न्यायाधीशों के 40-50 प्रतिशत पद रिक्त हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर कॉलेजियम अपनी सिफ़ारिशों को सर्वसम्मति से दोहराता है तो केंद्र को तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति कर देनी चाहिए.