पटना में बीते 12 जुलाई को विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित एक जनसुनवाई में राज्य के भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए जान गंवाने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं के परिजनों ने शिरकत की. इस दौरान एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की गई कि वह इन मामलों में उचित जांच सुनिश्चित करने के लिए एक न्यायिक आयोग बनाए और क़ानून प्रवर्तक एजेंसियों को समयबद्ध तरीके से जांच पूरी करने का निर्देश दे.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 36 मामलों में आरटीआई कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किया गया. 41 अन्य को या तो प्रताड़ित किया गया या नतीजे भुगतने की धमकी दी गई. वहीं, पुख़्ता सबूत होने के बावजूद एक भी मामले में दोषियों को सज़ा नहीं हुई.
गुजरात के राजकोट ज़िले का मामला. साल 2018 में दलित आरटीआई कार्यकर्ता नानजीभाई सोंडर्वा की हत्या कर दी गई थी. हत्या का एक आरोपी अदालत के रोक लगाने के बाद भी कथित तौर पर राजकोट ज़िले में नज़र आया था. आरटीआई कार्यकर्ता के बेटे ने अदालत में इसकी शिकायत की थी.
विशेष रिपोर्ट: एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 से लेकर अब तक देशभर में 79 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है, जिसमें क़रीब 20 फीसदी की हत्याएं केवल बिहार में हुई हैं. साल 2018 में बिहार में पांच आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले सामने आए हैं.
नवल किशोर आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ चांदनी चौक इलाके में लाल किले के सामने कपड़े की दुकान लगाया करते थे. नवल के आरटीआई लगाने की वजह से कई लोगों की दुकानें सील हो गई थीं.
बिहार के जमुई ज़िले में मारे गए आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या का कारण पंचायत विकास से जुड़ी योजनाओं में लूट खसोट को उजागर करना बताया जा रहा है.