अमेरिका के इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत समेत कई देशों में किए गए सर्वे में सामने आया है कि 75 फीसदी महिला पत्रकारों ने माना है कि वे ऑनलाइन हिंसक हमलों का सामना कर रही हैं. कई महिलाओं ने यह भी बताया कि ऑनलाइन ट्रोलिंग का नतीजा शारीरिक हमलों के तौर पर भी सामने आया.
कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की एक रिपोर्ट बताती है कि 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से लेकर अब तक राज्य में 48 पत्रकारों पर शारीरिक हमले हुए, 66 के ख़िलाफ़ केस दर्ज या उनकी गिरफ़्तारी हुई. इस दौरान 78 फीसदी मामले वर्ष 2020 और 2021 में महामारी के दौरान दर्ज किए गए.
राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2021 में देश भर में कम से कम छह पत्रकारों की हत्या हुई, 108 पर हमला हुआ और 13 मीडिया संस्थानों या अख़बारों को निशाना बनाया गया.
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट के मुताबिक़, इस सूची में लगातार दूसरी बार मेक्सिको पहले नंबर पर है, जहां इस साल सात पत्रकारों की हत्या की गई. इसके बाद भारत और अफ़ग़ानिस्तान हैं, जहां छह-छह पत्रकारों को मारा गया.
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट ने एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ जब तक कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक यह दमनकारी अभियान चलता रहेगा, जो आगे चलकर तेज़ ही होगा और स्वतंत्र ख़बरों के भविष्य और दुनियाभर में लोकतंत्र को जोख़िम में डालेगा.
न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिशन की ओर से कहा गया है कि ट्रैक्टर रैली को कवर करने वाले मीडियाकर्मी सूचना एकत्र करने और उन्हें जनता के लिए प्रसारित करने के अपने पेशेवर कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे. उनके ख़िलाफ़ बल और हिंसा का कोई भी उपयोग लोकतंत्र की आवाज़ और मीडिया की स्वतंत्रता का गला घोंटने के समान है.
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जान गंवाने वाले पत्रकारों में से 68 प्रतिशत की जान संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के बाहर गई. साल 2020 में पत्रकारों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करने के मामलों में वृद्धि हुई और ये 84 प्रतिशत हो गए हैं.