अगस्त 1929 में जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में हुई एक जनसभा में उस समय जेल में भूख हड़ताल कर रहे भगत सिंह और उनके साथियों के साहस का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘इन युवाओं की क़ुर्बानियों ने हिंदुस्तान के राजनीतिक जीवन में एक नई चेतना पैदा की है... इन बहादुर युवाओं के संघर्ष की अहमियत को समझना होगा.’
विशेष: साल 1929 में 8 अप्रैल को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था. बम फेंकने के बाद उन्होंने गिरफ़्तारी दी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला. 6 जून, 1929 को दिल्ली के सेशन जज लियोनॉर्ड मिडिल्टन की अदालत में दिया गया भगत सिंह का ऐतिहासिक बयान...
बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी को आज़ादी के बाद ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए कभी एक सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर भटकना पड़ता है तो कभी डबलरोटी बनाने का काम करना पड़ता है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे नरेंद्र मोदी का कांग्रेस के किसी नेता के भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त से जेल में न मिलने के बारे में किया गया दावा बिल्कुल ग़लत है.
नेहरू से लड़ते-लड़ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चारों तरफ नेहरू का भूत खड़ा हो गया. नेहरू का अपना इतिहास है. वो किताबों को जला देने और तीन मूर्ति भवन के ढहा देने से नहीं मिटेगा. यह ग़लती ख़ुद मोदी कर रहे हैं.
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ां, रामप्रसाद बिस्मिल और रौशन सिंह के शहादत दिवस (19 दिसंबर) पर उनकी मांओं और परिवार के दुर्दशा की कहानी.