विभाजन और सांप्रदायिक राजनीति पर आधारित भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया अभियान की शुरुआत भाजपा के पूर्व सांसद बलबीर पुंज के एक मैसेज से हुई, जिसमें उन्होंने साहनी को वामपंथी बताते हुए दावा किया था कि तमस में सांप्रदायिक हिंसा के लिए ‘प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से’ आरएसएस को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.
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जहां हिंदी लेखकों ने विभाजन पर बार-बार लिखा, हिंदी कवि इस पर तटस्थ बने रहे. कइयों ने आज़ादी मिलने के जश्न की कविताएं तो लिखीं, लेकिन देश बंटने के पीड़ादायी अनुभव पर उनकी चुप्पी बनी रही.
‘मित्रो मरजानी’ के बाद सोबती पर पाठक फ़िदा हो उठे थे. ये इसलिए नहीं हुआ कि वे साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ी थीं. ऐसा हुआ क्योंकि उनकी महिलाएं समाज में तो थीं, लेकिन उनका ज़िक्र करने से लोग डरते थे.