भोपाल में गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संभावना ट्रस्ट क्लीनिक के डॉ. रघुराम ने बताया है कि गुर्दे से संबंधित बीमारियां, जो संभवतः ज़हरीली गैस लगने के थोड़े समय बाद से ही शुरू हो गई थीं, गैस कांड पीड़ितों में सात गुना अधिक पाई जा रही हैं.
भोपाल गैस पीड़ितों के चार संगठनों ने उचित मुआवज़े की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की है. उनका कहना है कि गंभीर बीमारियों का शिकार हो चुके पीड़ित गैस कांड के चालीस साल बाद भी उचित मुआवज़े के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी समिति ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में गैस पीड़ितों के इलाज में बरती गई कई ख़ामियां दर्ज की हैं. इसने बताया है कि भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग द्वारा संचालित अस्पतालों में 1,247 स्वीकृत पदों में से 498 रिक्त हैं. सुपर स्पेशलिस्ट और विशेषज्ञों के ज़्यादातर पद ख़ाली हैं.
वीडियो: भोपाल गैस त्रासदी के बाद के वर्षों में पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी और गैस के गंभीर दुष्प्रभाव देखे जाने के बाद साल 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने अतिरिक्त मुआवज़े के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था. बीते दिनों शीर्ष अदालत ने इस मांग को ठुकरा दिया. इस केस में भोपाल के गैस पीड़ित संगठन भी पक्षकार थे, उनके प्रतिनिधियों से इस निर्णय को लेकर बातचीत.
2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के कारखाने से ज़हरीली गैस रिसने के चलते हज़ारों लोगों की मौत हो गई थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये मुआवज़े की मांग की थी.
बीते 30 दिसंबर को 10 महिलाओं ने अनिश्चितकालीन निर्जला अनशन शुरू किया था. भोपाल शहर के बाहरी इलाके में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से 1984 में दो-तीन दिसंबर की दरम्यानी रात गैस का रिसाव होने से 15,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित भी हुए.
अनिश्चितकालीन निर्जला अनशन का नेतृत्व कर रहे गैस पीड़ितों के पांच संगठनों की ओर से कहा गया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट को बता रही है कि गैस रिसाव में केवल 5,295 लोग मारे गए, जबकि इससे होने वाली बीमारियों से हज़ारों लोग मर रहे हैं और मरने वालों की संख्या 25,000 के क़रीब हो सकती है. उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी पर आरोपी डाव केमिकल से चंदा लेने का भी आरोप लगाया.
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से ज़हरीली गैस के रिसाव के चलते हजारों लोगों की मौत हो गई थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के माध्यम से अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त मुआवज़े की मांग की है.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उस मॉनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ये निर्देश दिया, जिसमें कहा गया है कि गैस त्रासदी के कैसर पीड़ितों को प्राइवेट अस्पताल में भेजा जा रहा है और वहां उन्हें मुफ़्त इलाज नहीं मिल रहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी मरीज़ को इलाज से इनकार नहीं किया जा सकता है और राज्य सरकार सभी को मुफ़्त इलाज मुहैया कराए.
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दिसंबर 1984 में हुई गैस त्रासदी ने तमाम महिलाओं से उनके पति को छीनकर उन्हें बेसहारा बना दिया था. उनकी आर्थिक मदद के लिए पेंशन योजना शुरू की गई थी, जिस पर दिसंबर 2019 से राज्य सरकार ने रोक लगा दी है. इसे दोबारा शुरू करने की घोषणा तो लगातार की जा रही हैं, लेकिन कोरोना काल में बुरी तरह से प्रभावित ये विधवा महिलाएं अब तक इससे महरूम हैं.
72 वर्षीय राजकुमार केसवानी बीते दिनों कोविड-19 से पीड़ित होने के बाद हुए फेफड़ों के संक्रमण के चलते भोपाल के एक अस्पताल में भर्ती थे, जहां शुक्रवार को उनका देहांत हो गया. वे भोपाल गैस त्रासदी से पहले यूनियन कार्बाइड की सुरक्षा चूक पर ध्यान दिलाने की रिपोर्टिंग और उनके साप्ताहिक सिनेमा कॉलम के लिए जाने जाते थे.
मध्य प्रदेश में भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे चार संगठनों ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर कहा कि भारत बॉयोटेक के ‘कोवैक्सीन’ टीके के क्लीनिकल परीक्षण में भाग ले रहे लोगों की सुरक्षा और उनके हकों को नजरअंदाज करने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों और संस्थाओं के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई और मुआवज़े की मांग भी की है.
गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठनों ने कहा कि भोपाल में कोविड-19 से त्रासदी पीड़ितों की मृत्यु दर अन्य लोगों से करीब 6.5 गुना ज्यादा है. हालांकि भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास निदेशक ने इस दावे को ख़ारिज किया है.
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के हित में काम करने वाले संगठनों का आरोप है कि ये मौतें भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के आइसोलेशन वार्ड में हुईं. यह भी आरोप है कि मौत इसलिए हुई क्योंकि वार्ड में किसी भी डॉक्टर की पूर्णकालिक ड्यूटी नहीं लगाई गई थी.
गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष ने बताया कि केंद्र सरकार के 30 करोड़ रुपये की सहायता से 2011 में 4,998 विधवा महिलाओं के लिए पेंशन शुरू की थी, जो दिसंबर 2019 से नहीं मिल रही है. इस मांग को लेकर कुछ महिलाएं क्रमिक भूख हड़ताल पर हैं.