भोपाल में कोविड-19 से जान गंवाने वाले लोगों में 75 प्रतिशत गैस पीड़ित: रिपोर्ट

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम रहे चार एनजीओ ने शहर में कोविड-19 से हुई मौतों पर जारी रिपोर्ट में बताया है कि 11 जून तक भोपाल में कोरोना से 60 मौतें हुई थीं, जिनमें से 48 गैस पीड़ित थे.

‘भोपाल में कोरोना से हुई 36 मौतों में से 32 गैस पीड़ित हैं’

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन और संभावना ट्रस्ट ने भोपाल में अब तक हुई कुल मौतों में से 36 की जानकारी निकाली है, जिसमें सामने आया है कि इनमें से बत्तीस गैस पीड़ित हैं. संगठनों का दावा है कि गैस जनित दुष्प्रभावों के चलते कोरोना का पीड़ितों पर गंभीर असर हो रहा है. इसके बावजूद सरकार इनके लिए आवश्यक क़दम उठाने में कोताही बरत रही है.

विशाखापट्टनम गैस लीक की घटना भोपाल गैस त्रासदी जैसी: संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ बास्कुट तुनचक ने कहा है कि विशाखापट्टनम का ताज़ा हादसा यह ध्यान दिलाता है कि अनियंत्रित उपभोग और प्लास्टिक के उत्पादन से किस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए बने अस्पताल के 15 में से 14 डॉक्टरों ने दिया इस्तीफ़ा

भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर से इस्तीफ़ा देने वाले डॉक्टर प्रमोशन नही मिलने से नाराज़ हैं. अस्पताल की निदेशक ने कहा कि डॉक्टरों की मांग पर ग़ौर किया जा रहा है.

भोपाल गैस कांड पीड़ितों ने किया प्रदर्शन, प्रदूषित इलाके की ज़हर की सफाई और मुआवज़े की मांग की

भोपाल गैस पीड़ितों के हितों के लिए काम करने वाले चार संगठनों ने कहा कि ज़हरीले कचरे को असुरक्षित तरीके से दबाने की वजह से ही आज कारखाने से चार से पांच किलोमीटर की दूरी तक भूजल प्रदूषित हो गया है.

भोपाल गैस पीड़ितों ने कहा, आरोपियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं केंद्र और राज्य सरकारें

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों ने आरोप लगाया है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने एक ऐसे अध्ययन के नतीजों को दबाया, जिसकी मदद से आरोपी कंपनियों से पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवज़ा देने के लिए दायर सुधार याचिका को मजबूत किया जा सकता था.

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल जब्बार का निधन

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ने वाले अब्दुल जब्बार बीते 35 सालों से गैस पीड़ितों के लिए काम करते रहे थे. इस हादसे में उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया था और उनके स्वास्थ्य पर भी गैस का बुरा असर हुआ था.

भोपाल गैस त्रासदी 20वीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुईं बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है. इनकी वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां हैं. ये भी बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में सबसे ज़्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

भोपाल गैस कांड और उसके लाखों पीड़ित मध्य प्रदेश में चुनावी मुद्दा क्यों नहीं हैं?

ग्राउंड रिपोर्ट: भोपाल में यूनियन कार्बाइड का कचरा भूजल के रास्ते शहर की ज़मीन में ज़हर घोल रहा है. लाखों लोगों की ज़िंदगी दांव पर लगी है लेकिन प्रदेश की राजनीति में मुख्य मुक़ाबले में रहने वाले दोनों दल- भाजपा और कांग्रेस ने गैस पीड़ितों को लेकर चुप्पी साध रखी है.

भोपाल गैस पीड़ितों के संगठन उपचुनाव में भाजपा के ख़िलाफ़ करेंगे प्रचार

पीड़ित संगठनों का कहना है कि हमारी कोशिश होगी कि हम मुआवज़े के मुद्दे पर छह लाख गैस पीड़ितों से पिछले तमाम सालों में किए गए झूठे वादों की हक़ीक़त मतदाताओं तक पहुंचाएं.

भोपाल गैस त्रासदी: 3 दशक बाद भी शहर के भूजल में मौजूद है रासायनिक ज़हर

यूनियन कार्बाइड को औपचारिक रूप से तो ख़त्म मान लिया गया, लेकिन जो ज़हर इस कारखाने ने भोपाल की ज़मीन में बोया, वो अब इस शहर की अगली नस्ल को अपनी चपेट में ले रहा है.

भोपाल गैस त्रासदी: गैस पीड़ितों के सबसे बड़े अस्पताल में डॉक्टर काम क्यों नहीं करना चाहते?

भोपाल के तमाम गैस राहत अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी सालों से बनी हुई है.

भोपाल गैस त्रासदी: हर सुबह सामने खड़ा यूनियन कार्बाइड उनके ज़ख़्मों को हरा कर देता है

त्रासदी के तीन दशक से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी यूनियन कार्बाइड में दफ़न ज़हरीले कचरे के निष्पादन के लिए न तो केंद्र सरकार और न ही मध्य प्रदेश सरकार ने कोई नीति बनाई है.