विभाजन से जुड़ी फिल्मों से पाकिस्तान डरता क्यों है?

पाकिस्तान से विशेष: अगर बेग़म जान या पाकिस्तान के बाहर विभाजन पर बनी कोई फिल्म सरकार को इतना डरा देती है कि उसे बैन करने से पहले देखना तक ज़रूरी नहीं समझा जाता, तो यह दिखाता है कि ये मुल्क किस कदर असुरक्षा और डर में जी रहा है.

अक्षय को राष्ट्रीय पुरस्कार देने वाले जूरी अध्यक्ष बोले, दंगल सामाजिक मुद्दे पर बात नहीं करती

जूरी अध्यक्ष प्रियदर्शन ने कहा कि जब रमेश सिप्पी ने अमिताभ बच्चन को पुरस्कार दिया था तब किसी ने सवाल नहीं उठाया तो आज मुझ पर सवाल क्यों?

पद्म भूषण के लिए पीछे पड़ने वाले गडकरी के बयान ने मुझे दुख पहुंचाया: आशा पारेख

बीते ज़माने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख ने कहा है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान कि पद्मभूषण पुरस्कार पाने के लिए मैं उनके पीछे पड़ी थी, काफी दुखद था.

हर कहानी को जॉली एलएलबी-2 जैसा अंत नहीं मिल पाता

जॉली एलएलबी-2 एक मुस्लिम युवा के फेक एनकाउंटर की कहानी है. आख़िर में उसे न्याय मिल जाता है. लेकिन असल ज़िंदगी की कहानियों को क्या ऐसा अंत मिल पाता है?

फिल्म इंडस्ट्री ने धमकी और ब्लैकमेलिंग के आगे झुकने की आदत बना ली है

आज ये फिल्मों और किताबों के बारे में है, कल ये पत्रकारिता या किसी और बारे में होगा. आज़ादी में हो रही इस दख़लअंदाज़ी के ख़िलाफ़ खड़ा होना अब ज़रूरी हो गया है.

भोजपुरी फिल्म फेस्टिवल : अपने ही जाल में उलझा भोजपुरी सिनेमा

बदलते दौर के भौतिक चमक-दमक को तो भोजपुरी सिनेमा खूब दिखाता है, पर सामाजिक -सांस्कृतिक मूल्यों की जड़ता से नहीं भिड़ता. वह एक बड़े विभ्रम का शिकार है.

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