अक्षय को राष्ट्रीय पुरस्कार देने वाले जूरी अध्यक्ष बोले, दंगल सामाजिक मुद्दे पर बात नहीं करती

जूरी अध्यक्ष प्रियदर्शन ने कहा कि जब रमेश सिप्पी ने अमिताभ बच्चन को पुरस्कार दिया था तब किसी ने सवाल नहीं उठाया तो आज मुझ पर सवाल क्यों?

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अक्षय कुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार देने का बचाव करते हुए जूरी अध्यक्ष प्रियदर्शन ने कहा कि जब रमेश सिप्पी ने अमिताभ बच्चन को पुरस्कार दिया था तब किसी ने सवाल नहीं उठाया तो आज मुझ पर सवाल क्यों?

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शुक्रवार को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा होने के बाद से अक्षय कुमार को रुस्तम फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार दिए जाने के फैसले की आलोचना शुरू हो गई थी. कई लोगों का मानना है कि मनोज बाजपेयी या आमिर खान उनसे बेहतर विकल्प होते. लोगों द्वारा जूरी के फैसले पर सवाल भी खड़े किए गए हैं.

इस पर 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समिति के जूरी अध्यक्ष फिल्मकार प्रियदर्शन ने इस फैसले पर उठे सवालों और आलोचना पर एक इंटरव्यू में कहा, ‘अक्षय इस सम्मान के हक़दार हैं, इसलिए उन्हें यह दिया गया. जूरी में 38 लोग थे. आप इतने सारे लोगों के फैसले पर सवाल कैसे उठा सकते हैं. मैंने यह सब सुना है और मैं इसका बिल्कुल सरल जवाब दूंगा. जब रमेश सिप्पी जूरी अध्यक्ष थे तब उन्होंने अमिताभ बच्चन को अवॉर्ड मिला था. जब प्रकाश झा अध्यक्ष बने तब अजय देवगन को यह सम्मान मिला. तब तो कोई सवाल नहीं उठा था. तो अब ये सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?’

बता दें कि प्रियदर्शन ने अक्षय के साथ हेरा-फेरी जैसी सफल फिल्म समेत 6 फिल्मों में काम किया है. प्रियदर्शन ने उनके अभिनय की तारीफ करते हुए कहा, ‘अक्षय को यह सम्मान उनके दो फिल्मों में अच्छे परफॉरमेंस के चलते मिला है, एयरलिफ्ट और रुस्तम. यह जूरी का निर्णय था. नियमानुसार हम किसी एक फिल्म का ही नाम दे सकते थे, इसलिए सिर्फ रुस्तम को चुना गया. पर इस सम्मान का आधार उनका दोनों फिल्मों में अभिनय है.’

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राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा के बाद से ही इन पर कई सवाल उठाए गए थे. लोगों को आमिर खान की चर्चित फिल्म दंगल और समलैंगिकता जैसे संवेदनशील विषय पर बनी अलीगढ़ को पुरस्कार मिलने की उम्मीद थी. जब आमिर खान के बारे में प्रियदर्शन से सवाल किया तब उन्होंने कहा, ‘आमिर ने हाल ही में कहा था कि वो व्यक्तिगत रूप से कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं करेंगे. जहां तक मुझे याद आता है कि जब 2008 में जब तारे ज़मीन पर को पुरस्कार मिला था, तब वे समारोह में भी नहीं आए थे. तो पुरस्कार जीतने का यह मौका किसी और अभिनेता के लिए क्यों खराब किया जाए.’

अलीगढ़ के बारे में उन्होंने कहा कि यह फिल्म उन 89 फिल्मों की सूची में नहीं थी, जिसे जूरी ने देखा. ‘जब हमने फिल्में देखीं तो लगा कि कई बॉलीवुड फिल्में समलैंगिकता विषय के इर्द-गिर्द बनी हैं. ये फिल्में असल में सामाजिक समस्याओं को नहीं दिखातीं. वहीं क्षेत्रीय सिनेमा की फिल्में सामाजिक मुद्दों पर बनती हैं. वे अलग कहानी कहने की कोशिश करती हैं. यहां तक कि दंगल भी किसी सामाजिक मुद्दे पर बात नहीं करती. यह किसी की ज़िंदगी की कहानी है.’

क्षेत्रीय फिल्मों की तारीफ़ करते हुए प्रियदर्शन ने कहा, ‘क्षेत्रीय फिल्में 100 करोड़ कमाने के उद्देश्य से नहीं बनाई जाती हैं. वे दिल से बनाई जाती हैं. हमें भारतीय संस्कृति को दिखाने के लिए ऐसी फिल्मों को प्रमोट करना चाहिए. क्षेत्रीय फिल्में सामाजिक मुद्दों पर बहुत अच्छे से काम कर रही हैं.’

इस बीच, गजनी जैसी हिट फिल्म बनाने वाले एआर मुरुगादास ने भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों को पक्षपातपूर्ण बताया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा इस फैसले में पक्षपात और जूरी सदस्यों का भेदभाव स्पष्ट दिखाई देता है. वहीं अलीगढ़ फिल्म के निर्देशक हंसल मेहता ने राष्ट्रीय पुरस्कार न मिलने पर निराशा ज़ाहिर की, पर लोगों की आलोचना के बाद उन्होंने स्पष्ट किया, ‘मैंने जब राष्ट्रीय पुरस्कार के प्रति निराशा जताई थी तो यह व्यक्तिगत थी और किसी व्यक्ति के प्रति नहीं थी. मुझे विश्वास है कि जूरी ने अपने समझ और खांचे के अन्तर्गत बेहतर निर्णय लिया होगा.’

वैसे 2014 में हंसल की फिल्म शाहिद को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. उन्होंने कहा कि जिस साल शाहिद ने दो राष्ट्रीय पुरस्कार जीते थे उस साल नियुक्त जूरी ने  लंच बॉक्स फिल्म पर ध्यान नहीं दिया था, उसी तरह अलीगढ़ इस बार उस खांचे में उपयुक्त नहीं रही होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के आधार पर )