इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने एक बयान में कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नागरिक समाज, पत्रकारों या अन्य प्रमुख हितधारकों के प्रतिनिधित्व के बिना केवल मीडिया उद्योग के चुनिंदा प्रतिनिधियों से मुलाकात करके बदलाव किए.
नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट्स फेडरेशन ने कहा है कि प्रसारण सेवा विधेयक टीवी चैनलों से लेकर सभी प्रकार के मीडिया जैसे फिल्म, ओटीटी, यूट्यूब, रेडियो सोशल मीडिया के साथ-साथ समाचार वेबसाइटों और पत्रकारों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की दिशा में एक क़दम है.
वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम वीडियो को धर्म, राजनीति और जाति विभाजन से जुड़े प्रोजेक्ट को लेकर भाजपा और हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के दबाव का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते कई प्रोजेक्ट या तो रद्द कर दिए जाते हैं या उन्हें बीच में ही रोक दिया जाता है.