ओटीटी नेटवर्क, फिल्म निर्माताओं पर केंद्र सरकार और भाजपा का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष नियंत्रण: रिपोर्ट

वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम वीडियो को धर्म, राजनीति और जाति विभाजन से जुड़े प्रोजेक्ट को लेकर भाजपा और हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के दबाव का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते कई प्रोजेक्ट या तो रद्द कर दिए जाते हैं या उन्हें बीच में ही रोक दिया जाता है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: pixabay)

वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम वीडियो को धर्म, राजनीति और जाति विभाजन से जुड़े प्रोजेक्ट को लेकर भाजपा और हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के दबाव का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते कई प्रोजेक्ट या तो रद्द कर दिए जाते हैं या उन्हें बीच में ही रोक दिया जाता है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: pixabay)

नई दिल्ली: वॉशिंगटन पोस्ट ने अमेरिका के बड़े स्ट्रीमिंग दिग्गजों, अमेज़ॉन के प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के भारत में कमीशनिंग निर्णयों के पीछे चल रहे पर्दे के पीछे के खेल की जांच में निष्कर्ष निकाला है कि ‘जिस तरह भाजपा और उसके वैचारिक सहयोगियों ने अपने ‘हिंदू-सर्वप्रथम (हिंदू-फर्स्ट)’ एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए वॉट्सऐप पर प्रचार प्रसार किया है और ट्विटर पर असहमति को बलपूर्वक कुचलने के लिए राज्यीय शक्तियों को तैनात किया है, उसी तरह उन्होंने नेटफ्लिक्स और प्राइम वीडियो पर क्या भारतीय सामग्री प्रसारित होगी उसे तय करने के लिए आपराधिक मामलों की धमकी और सामूहिक सार्वजनिक दबाव का इस्तेमाल किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, अखबार ने बताया है कि कैसे ‘स्व-सेंसरशिप की संस्कृति यहां के स्ट्रीमिंग उद्योग में व्याप्त है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से नजर आती है. उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि नेटफ्लिक्स और प्राइम वीडियो के भारत कार्यालयों के अधिकारी और उनके वकील राजनीतिक कथानकों पर फिर से काम करने और हिंदू दक्षिणपंथी या भाजपा को नाराज करने वाले धर्म के संदर्भों को हटाने के लिए व्यापक बदलाव की मांग करते हैं.’

जांच इस बात पर केंद्रित है कि कैसे ‘भारत के राजनीतिक, धार्मिक या जाति विभाजन से संबंधित प्रोजेक्ट प्रस्तावित होने पर विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिए जाते हैं, या उन पर काम होने के दौरान बीच में ही छोड़ दिया जाता है. यहां तक कि पूरी हो चुकी सीरीज और फिल्मों को भी नेटफ्लिक्स और प्राइम वीडियो ने चुपचाप रद्द कर दिया.’

फिल्मकार अनुराग कश्यप ने इन निष्कर्षों को ‘अदृश्य सेंसरशिप’ के समान बताया है.

‘सेल्फ-सेंसरशिप’ का बढ़ता दायरा

अखबार ने अमेजॉन प्राइम की सीरीज ‘तांडव’ के उदाहरण से आक्रोश, प्रतिबंधात्मक सरकारी नियमों और पुलिस की धमकियों से जुड़े तरीकों के प्रभाव को समझाया है, जिसे इसने ‘एक महत्वपूर्ण समय’ के रूप में वर्णित किया है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘मामले से परिचित लोगों के अनुसार, इसकी एक कर्मचारी को कुछ समय के लिए छिपने और अपना पासपोर्ट पुलिस को सौंपने के लिए मजबूर किया गया था.’

नेटफ्लिक्स इंडिया के प्रोडक्शन मैनेजमेंट के पूर्व निदेशक पार्थ अरोड़ा ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया, ‘आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आप वही गलतियां नहीं कर रहे हैं जो ‘तांडव’ के मामले में हुई थीं.’

उन्होंने आगे कहा कि ‘कंपनियों को आगे बढ़ने वाली परियोजनाओं की समीक्षा करनी होती है.’ कई परियोजनाओं को हरी झंडी दी गई और शूट भी नहीं किया गया, जिसमें ‘गोर्मिंट’ नामक एक सीरीज भी शामिल है, जो सरकार की स्थिति पर टिप्पणी करती थी और भारतीय राजनीति की आलोचना करती थी.

अनुराग कश्यप ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया, 2021 में नेटफ्लिक्स ने ‘मैक्सिमम सिटी’ किताब के रूपांतरण को बंद कर दिया, ‘जो मुंबई में हिंदू कट्टरता की पड़ताल की जा रही थी.’

अखबार का कहना है कि 2021 की शुरुआत में ओटीटी मंचों को नियंत्रित करने का पहला प्रयास तब किया गया था जब ‘भारत सरकार ने स्व-नियमन की एक प्रणाली शुरू की थी जिसमें स्ट्रीमिंग कंपनियों को 15 दिनों के भीतर दर्शकों की शिकायतों का समाधान करना होता है, अन्यथा इस उद्योग के एक निकाय या विभिन्न मंत्रालयों द्वारा संचालित एक सरकारी समिति द्वारा नियामक जांच का सामना करना होता है.’

राजनीति के लिए भीड़ की तैनाती?

दर्शकों के ‘आक्रोश’ और बड़े राजनीतिक लक्ष्यों के लिए इसकी तैनाती को ‘तांडव’ के ही मामले से समझा जा सकता है.

एक दक्षिणपंथी शख्स रमेश सोलंकी ने ही तांडव सीरीज के खिलाफ 2019 में पुलिस में पहली शिकायत दर्ज कराई थी. अखबार को दिए एक साक्षात्कार में सोलंकी ने उन ‘सैकड़ों’ वॉट्सऐप और फेसबुक ग्रुप के अस्तित्व के बारे में बताया, जहां उनके जैसे हिंदू राष्ट्रवादी ‘स्ट्रीमिंग मंचों पर दबाव कैसे बनाया जाए, इस पर चर्चा करने के लिए’ एकत्र हुए थे.

उन्होंने कहा, ‘समूह के सदस्य दुनियाभर में फैले हुए हैं और उन्होंने उन लोगों को वित्तीय और कानूनी सहायता की पेशकश करते हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से विदेशी कंपनियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी.’

सोलंकी ने कहा कि इसके बाद उनके पास भाजपा नेताओं के बधाई संदेशों का तांता लगा रहा और 2022 में वह भाजपा में शामिल हो गए.

उन्होंने अखबार के सामने दावा किया कि प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स सबक सीख चुके हैं, ‘वे जानते हैं: अगर हम कुछ गलत करते हैं, सीमा लांघते हैं, तो हमें इसके नतीजे भुगतने होंगे.’

नया विवादास्पद विधेयक

उल्लेखनीय है कि इस बीच एक नया विवादास्पद मसौदा प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक-2023, जो 1995 में बनाए गए केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम की जगह लेने के लिए बनाया गया है, अब पूरे मीडिया स्पेस को विनियमित करने में सक्षम होगा.

इस मसौदे की आलोचना वरिष्ठ मीडिया स्कॉलर सेवंती निनान ने भी न्यू टैलोन्स नामक लेख में की है.

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