‘अगर जज रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति पाने की सोच रखते हैं तो न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं रह सकती’

हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता ने न्यायिक नियुक्तियों और सुधारों पर बात करते हुए कहा कि अगर सेवानिवृत्ति के कगार पर खड़े जज सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों की चाह में सत्ता के गलियारों में भीड़ लगाते हैं तो क्या न्याय की उम्मीद की जा सकती है. उन्होंने सरकार द्वारा जजों के नामों को मंज़ूरी देने में धर्म के आधार पर भेदभाव किए जाने की भी बात कही है.

पूर्व जजों ने कहा- यूएपीए और राजद्रोह क़ानून को जल्द से जल्द ख़त्म करने की ज़रूरत

सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व न्यायाधीशों ने कहा है कि आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत एक उदाहरण है कि देश में आतंकवाद रोधी क़ानून का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है. यूएपीए की असंवैधानिक व्याख्या संविधान के तहत दिए गए जीवन के मौलिक अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और त्वरित सुनवाई के अधिकार को ख़त्म करता है.

सुनें: देश की न्यायपालिका से प्रशांत भूषण के कुछ ज़रूरी सवाल

बिड़ला-सहारा डायरी केस और कालिखो पुल सुसाइड मामले में न्यायपालिका पर सवाल उठाता वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के लेख का आॅडियो.

इससे पहले कि बिड़ला-सहारा डायरी केस हमेशा के लिए दफ़न हो जाए, ये सवाल पूछे जाने बेहद ज़रूरी हैं

वह समय आ चुका है जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को गंभीरता से विचार-विमर्श करके इन दस्तावेजों की विस्तृत जांच के लिए कोई रास्ता निकालने के बारे में सोचना चाहिए.