दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में ग़ैर-फिल्मी गीतों के टीवी, ऐप या सोशल मीडिया मंचों के ज़रिये सार्वजनिक रिलीज़ से पहले समीक्षा के लिए सेंसर बोर्ड के बनाने की मांग की गई थी. कोर्ट ने इसे ख़ारिज करते हुए कहा कि इसके लिए पहले से अधिनियम मौजूद हैं और यह कोई अन्य क़ानून नहीं बना सकता.
फिल्मकारों ने कहा है कि सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में संशोधन के केंद्र के प्रस्ताव से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक असहमति के ख़तरे में पड़ने की आशंका है. बीते अप्रैल में सरकार ने फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण को ख़त्म करने का फैसला किया था. यह न्यायाधिकरण केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा सुझाए गए कटौती से पीड़ित फिल्म निर्माताओं की अपील सुनने के लिए गठित एक वैधानिक निकाय थी.