इस घुप्प अंधेरे में नागरिकों के विवेक को संबोधित करने वाले लोग कहां हैं?

इस समय संविधान की सबसे बड़ी सेवा सत्ताधीशों के स्वार्थी मंसूबों की पूर्ति के उपकरण बनने से इनकार करना है. समझना है कि संविधान के मूल्यों को बचाने की लड़ाई सिर्फ न्यायालयों में या उनकी शक्ति से नहीं लड़ी जाती. नागरिकों के विवेक और उसकी शक्ति से भी लड़ी जाती है.

ज्ञानवापी से अजमेर: कहां रुकेगा मस्जिदों में मंदिर होने के दावों का सिलसिला

वीडियो: संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे से लेकर अजमेर में दरगाह शरीफ़ में मंदिर होने के दावे पर नोटिस भेजे जाने के पीछे अदालती आदेश हैं. क्या अदालतें उपासना स्थल अधिनियम की अवहेलना कर रही हैं? इस बारे में द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.

अयोध्या विवाद: किन्हें, क्यों और कैसे याद आएंगे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

कई जानकारों का कहना है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल में (खासकर अंतिम दिनों में) जो कुछ भी कहा व किया, उससे इस बात को ख़ुद अपने ही हाथों निर्धारित कर डाला कि इतिहास उनके प्रति कैसा सलूक करे.

एएमयू पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछला फैसला पलटा, अल्पसंख्यक दर्जे पर निर्णय बाक़ी

शीर्ष अदालत ने साल 1967 के एस. अज़ीज़ बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए गए अपने फैसले को पलटा है. हालांकि, अभी यह तय होना बाकी है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा या नहीं.

न्यायिक स्वतंत्रता का अर्थ हमेशा सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला देना नहीं: सीजेआई चंद्रचूड़

एक राष्ट्रीय दैनिक से जुड़े कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बहुत सारे वर्ग या समूह हैं, जो कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में फैसला करते हैं, तो आप स्वतंत्र हैं. अगर आप मेरे पक्ष में फैसला नहीं करते हैं, आप स्वतंत्र नहीं हैं. इसी बात से मुझे आपत्ति है.

एक्सक्लूसिव: फुल कोर्ट बैठक के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ और कुछ जजों के बीच हुई थी तीखी बहस

इस अगस्त में कुछ वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा देने के संबंध में हुई उच्चतम अदालत की एक फुल कोर्ट मीटिंग के दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ को कुछ न्यायाधीशों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा था.

जजों की सरकार प्रमुखों से मुलाकात का मतलब यह नहीं कि कोई सौदा हुआ है: सीजेआई चंद्रचूड़

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि जब भी उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राज्यों और केंद्र में सरकारों के प्रमुखों से मिलते हैं, तो वे कभी भी लंबित मामलों पर चर्चा नहीं करते हैं. बैठकें अक्सर प्रशासनिक मामलों से जुड़ी होती हैं.

जस्टिस संजीव खन्ना देश के अगले प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किए गए

1983 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के तौर पर शामिल हुए जस्टिस संजीव खन्ना साल 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय में जज बने थे. 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बतौर प्रोन्नत किया गया था. वे 13 मई 2025 तक सीजेआई का पद संभालेंगे.

सीजेआई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक फ़ैसलों पर बार एसोसिएशन को आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय के प्रतीक चिह्न और ‘लेडी जस्टिस’ की प्रतिमा में किए गए बदलाव के ख़िलाफ़ एक प्रस्ताव भी पारित किया है.

इतिहास जस्टिस चंद्रचूड़ को कैसे याद करेगा, यह उन्होंने ख़ुद तय कर दिया है

भारत के इतिहास में यह दर्ज किया जाएगा कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की इमारत जब गिराई जा रही थी, हमारे कई न्यायाधीशों ने उसकी नींव खोदने का काम किया. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का नाम सुर्ख़ियों में होगा.

‘भगवान भरोसे’ न्यायपालिका: पांच करोड़ मामले लंबित और जज केवल 20 हज़ार

सक्षम और स्वस्थ न्यायपालिका की अहम शर्तें हैं, केसों की सुनवाई के लिए पर्याप्त जजों और उनके सहयोगी स्टाफ का होना और इसके लिए आवश्यक ढांचागत सुविधाएं होना. फिलहाल हमारी न्यायपालिका दोनों ही मोर्चों पर संघर्ष कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट की उसके ख़िलाफ़ की गईं टिप्पणियों को शर्मनाक बताया

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एक जज ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक स्थगन आदेश की आलोचना करते हुए टिप्पणी की थी कि सर्वोच्च न्यायालय स्वयं को वास्तविकता से अधिक 'सर्वोच्च' मानता है, और उच्च न्यायालयों को वास्तविकता से कम 'उच्च' मानता है.

दिल्ली: नगर निगम में ‘एल्डरमैन’ नियुक्ति के उपराज्यपाल के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने बरक़रार रखा

दिल्ली नगर निगम में 250 निर्वाचित और 10 नामांकित सदस्य होते हैं. शीर्ष अदालत ने पिछले साल इसी मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि उपराज्यपाल को 'एल्डरमैन' को नामित करने की शक्ति देने का मतलब होगा कि वह एक निर्वाचित नागरिक निकाय को अस्थिर कर सकते हैं.

आरक्षण वर्गीकरण पर शीर्ष अदालत का निर्णय नए प्रश्नों को जन्म देता है

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने दलित-आदिवासी संस्कृति और परंपराओं पर प्रश्नचिह्न लगाया है, साथ ही यह महत्वपूर्ण प्रश्न भी प्रस्तुत कर दिया हैं कि आरक्षण के प्रावधान के बावजूद जो जातियां और वर्ग अब तक पिछड़े हैं, उनकी उन्नति का उत्तरदायित्व कौन लेगा?

आरक्षण पर अदालत का फैसला: कार्यकर्ताओं ने किया उप-वर्गीकरण का स्वागत, पर नेता विरोध में

एक ओर योगेंद्र यादव और बेला भाटिया का कहना है कि इससे आरक्षण का लाभ सर्वाधिक वंचित समुदाय तक पहुंच सकेगा, वहीं, कुछ नेता इसे 'फूट डालो राज करो' की संज्ञा देते हैं.

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