आज़ादी की सालगिरह कोई तमाशा नहीं, उससे फिर से इक़रार करने का दिन है

'आज़ादी की लड़ाई हमेशा जारी रहती है. कभी उसका अंत नहीं होता. हमेशा उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है, हमेशा उसके लिए क़ुर्बानी करनी पड़ती है, तब वह क़ायम रहती है.'

क्या अयोध्या अब नए बदलाव की ओर चल पड़ी है?

लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो चुनाव विश्लेषक और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा था कि भले सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ, हवा में ऑक्सीजन थोड़ी बढ़ गई है. अब इस 'ऑक्सीजन' के असर को अयोध्या में महसूस किया जा सकता है.

विभाजन से अब तक सांप्रदायिक हिंसा का स्वभाव किस तरह बदला है

वीडियो: देश के अग्रणी विचारकों में से एक आशीष नंदी का मानना है कि उनके जैसे लोग 2014 के चुनावों के परिणामों का अनुमान नहीं लगा पाए थे. द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज के साथ बातचीत में उन्होंने नरेंद्र मोदी, गोपाल गोडसे और मदनलाल पाहवा के साथ अपने प्रसिद्ध साक्षात्कारों को याद किया.

स्वतंत्रता एक बार मिल गई स्थिति नहीं है; उसे लगातार समृद्ध करना और बचाना होता है

कभी कभार | अशोक वाजपेयी: स्वतंत्रता के अर्थ में बदलते परिवेश और समय के अनुसार कई और अर्थ जुड़ते रहे. अगर आज विचार करें तो लगेगा कि इस समय का अर्थ प्रमुख रूप से यह है कि हम झूठ-नफ़रत-हिंसा की मानसिकता और राजनीति की ग़ुलामी करने से मुक्त रहें.

‘हिंदू समाज ने राजनीतिक ग़ुलामी भोगी, लेकिन वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा कायर कभी नहीं रहा’

पुस्तक अंश: जो अपने घोषित सिद्धांतों पर नहीं टिक सकता और जो सुविधा के मुताबिक सिद्धांत बदलता रहता है वह कायर है या वीर?

तेलंगाना: भाजपा विधायक बोले- 50 कट्टर हिंदू सांसद चुनें जो संसद में ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग करें

तेलंगाना के गोशामहल से भाजपा विधायक टी. राजा सिंह ने गोवा में आयोजित वैश्विक हिंदू राष्ट्र महोत्सव के समापन में कहा कि इन दिनों कई नेता कट्टर हिंदू नेता होने का दिखावा करते हैं पर चुनाव जीतने के बाद धर्मनिरपेक्ष बन जाते हैं. ऐसे सांसद-विधायक 'हिंदू राष्ट्र' की स्थापना के लिए बेकार हैं.

‘कर्फ़्यू की रात’: हिंदुस्तान की रगों में बह रही सांप्रदायिकता का दस्तावेज़

पुस्तक समीक्षा: युवा कहानीकार शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ की कहानियां अपने परिवेश को न केवल दर्शाती हैं, बल्कि इसमें समय के साथ बदलते हिंदुस्तान की जटिलता, संघर्ष में पिसते नागरिकों की निराशा और जिजीविषा गहराई से दर्ज है.

बांग्लादेशी मूल के अल्पसंख्यकों ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दिया: असम सीएम

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा है कि कि भाजपा ने असमिया लोगों और आदिवासियों के लिए काम किया, लेकिन बांग्लादेशी मूल के अल्पसंख्यकों ने सत्तारूढ़ पार्टी को वोट नहीं दिया.

वडोदरा: सरकारी योजना के तहत मुस्लिम महिला को मकान मिलने के ख़िलाफ़ उतरे रहवासी

साल 2017 में वडोदरा में मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत एक मुस्लिम महिला को हरनी स्थित एक आवासीय परिसर में मकान आवंटित हुआ था. लाभार्थी महिला वर्तमान में अपने परिवार के साथ शहर के दूसरे इलाके में रहती है, लेकिन परिसर के रहवासियों ने 'संभावित ख़तरे' का हवाला देते हुए जिला प्रशासन में शिकायत दर्ज करवाई है.

क्या हैं विफलता के कर्तव्य?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विफल होने के बाद क्या करें या न करें यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि आपका क्या-कुछ दांव पर लगा है.

संपूर्ण क्रांति और भारतीय जनतंत्र पर उसके दूरगामी प्रभाव

आम तौर पर आपातकाल को भारतीय जनतंत्र के इतिहास में बड़ा व्यवधान माना जाता है. पर उसके पहले हुए उस आंदोलन के बारे में इस दृष्टि से चर्चा नहीं होती है कि वह जनतांत्रिक आंदोलन था या ख़ुद जनतंत्र को जनतांत्रिक तरीक़े से व्यर्थ कर देने का उपक्रम. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्ताईसवीं क़िस्त.

क्या जातिवाद से लड़े बिना हिंदुत्ववादी एजेंडा के ख़िलाफ़ कोई संघर्ष संभव है?

सवर्णों ने इस विमर्श को केंद्र में ला दिया है कि ओबीसी और दलित हिंदुत्व के रथी हो गए हैं. यह विमर्श इस तथ्य को कमज़ोर करना चाहता है कि ऊंची जातियां हिंदुत्व का केंद्र हैं, उसे विचार और ताक़त देती हैं. आज भाजपा यदि अपने विस्तार के अंतिम बिंदु पर दिखाई देती है तो उसकी वजह यह है कि वह गैर-ब्राह्मण समूहों में अपेक्षित पकड़ नहीं बना पाई है.  

राजनीतिक विश्लेषकों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए, कहा- लोकतंत्र ख़तरे में है

लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद भी चुनाव आयोग की विभिन्न गतिविधियों पर सवाल उठे हैं, जैसे कि चुनाव का लंबा कार्यक्रम और अनंतनाग में स्थगित चुनाव. इसके अलावा, आयोग ने प्रत्येक चरण में मतदान के बाद मतों की संख्या बताने और मीडिया से रूबरू होने की प्रथा भी छोड़ दी है.

बात भारत की: मणिपुर हिंसा, चुनावी भाषणों में पीएम के दावे, ख़ामोश चुनाव आयोग

'बात भारत की' की पहली कड़ी में मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के सालभर पूरे होने, पीएम मोदी के भाषणों में बढ़ते बेबुनियाद दावों और निर्वाचन आयोग द्वारा ओढ़ी गई चुप्पी पर वरिष्ठ पत्रकारों- निधीश त्यागी और संगीता बरुआ पिशारोती के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.