पहचान की अवधारणा खालिस इंसानी ईजाद है. पहचान के लिए ख़ून की नदियां बह जाती हैं. पहचान का प्रश्न आर्थिक प्रश्नों के कहीं ऊपर है. उस पहचान को अगर कोई भूमिगत कर दे, तो उसकी मजबूरी समझी जा सकती है और इससे उसके समाज की स्थिति का अंदाज़ा भी मिलता है.
तिरंगे में लिपटे एक पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यपाल के पार्थिव शरीर के आधे हिस्से पर अपना झंडा प्रदर्शित करके भाजपा ने पूरी तरह साफ कर दिया कि राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान के मामले में वह अब भी ‘ख़ुद मियां फजीहत दीगरे नसीहत' की अपनी नियति से पीछा नहीं छुड़ा पाई है.
राष्ट्रध्वज को जब बहुसंख्यकवादी अपराध को जायज़ ठहराने के उपकरण के रूप में काम में लाया जाने लगेगा, वह अपनी प्रतीकात्मकता खो बैठेगा. फिर एक तिरंगे पर दूसरा दोरंगा पड़ा हो, इससे किसे फ़र्क़ पड़ता है?
भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि 1921 का मालाबार विद्रोह हिंदू समाज के ख़िलाफ़ था और केवल असहिष्णुता के चलते किया गया था.
‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) पांच दशकों से अधिक समय से भारत की क़ानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.
मुसलमान विरोधी घृणा से मुक्ति फ़ौरी राष्ट्रीय काम है. इसमें पहले ही 70 साल की देर हो चुकी है. अब और देर नहीं की जा सकती. अगस्त के महीने में यह नहीं हो सकता कि चीखें भारत के आसमान को ढंक लें: मुझे बचाओ और आप स्वाधीनता के बैंड बाजे के शोर से उन चीखों को दबा दें. स्वाधीनता का ऐसा पतन हमें क़बूल नहीं होना चाहिए.
विशेष: हर रचनाकार और उसकी रचना अपना पुनर्पाठ मांगती है. इस कड़ी में 'ईदगाह' को दोबारा पढ़ते हुए प्रेमचंद के सामाजिक यथार्थ के चित्रण की सूक्ष्मता, अर्थ के व्यापक और विविध स्तरों को समझ पाने की एक नई दृष्टि मिलती है.
बीते कुछ दिनों से हरियाणा में एक के बाद एक हो रही महापंचायतें मुस्लिम-विरोधी आह्वानों से गूंज रहीं हैं. देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ भाषाई और शारीरिक हिंसा रोज़ हो रही है, लेकिन नफ़रत का यूं खुला आयोजनपूर्वक प्रचार क्या बिना मक़सद किया जा रहा है? क्या जब बड़ी हिंसा होगी, हत्याएं होंगी, तभी हम जागेंगे?
वीडियो: दिल्ली का उत्तम नगर इलाके में लगभग 500 रेहड़ी-पटरी की दुकानें रोज़ लगती हैं. इनमें से अधिकांश मुस्लिम विक्रेता हैं. बीते 18 जून को एक फल विक्रेता और एक दुकानदार के बीच हुई कहासुनी के बाद बजरंग दल ने कुछ पोस्टर लगाए थे जिसमें लिखा था ‘सभी हिंदुओं से निवेदन है कि किसी भी असामाजिक फ्रूट रेहड़ी वाले से ख़रीददारी न करे’. इसके बाद फल विक्रेताओं को अपनी रोज़ी कमाने के लिए मशक़्क़त करनी पड़ रही है.
वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण और दो अन्य लोगों ने विहिप नेता और राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य चंपत राय पर बिजनौर की एक गौशाला की स्थानीय भू-माफिया द्वारा कब्ज़ाई गई ज़मीन वापस दिलाने में मदद न किए जाने को लेकर आरोप लगाए हैं. इसे लेकर राय के भाई ने शिकायत दर्ज करवाई है.
मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा सिर्फ भारत में नहीं है. यह एक प्रकार की विश्वव्यापी बीमारी है और यह कनाडा में भी पाई जाती है. लेकिन इस हिंसा पर समाज, सरकार और पुलिस की प्रतिक्रिया क्या है, कनाडा और भारत में यही तुलना का संदर्भ है.
इंदौर, उज्जैन और मंदसौर ज़िलों की हिंसक घटनाओं को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा जुटाने की आड़ में कुछ संगठनों के हथियारबंद सदस्यों ने अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाते हुए सांप्रदायिक सद्भाव भंग किया था.
यह भारत का सामाजिक स्वभाव बनता जा रहा है कि मुसलमानों को खुलेआम मारा जा सकता है, उनके ख़िलाफ़ हिंसक प्रचार किया जा सकता है और पुलिस-प्रशासन से लेकर राजनीतिक दलों तक कोई भी इसे गंभीर मामला मानने को तैयार नहीं.
सुदर्शन न्यूज़ चैनल ने फ़लस्तीन पर इज़रायल के हमले का समर्थन करते हुए अपने एक कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ में सऊदी अरब की एक मस्जिद पर मिसाइल दागते हुए दिखाया था. ऐसा करने के लिए चैनल ने रूपांतरित ग्राफिक का सहारा लिया था. चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हानके ने शो में कहा था कि इज़रायल का समर्थन करें क्योंकि वह अपने दुश्मनों और जिहादियों की सही तरीके से हत्या कर रहा है.
बीते कुछ सालों से बहुसंख्यकवाद पर सामाजिक ऊर्जा और विचार दोनों ख़र्च किए गए, लेकिन आज संकट की इस घड़ी में बहुसंख्यकवादी इंफ्रास्ट्रक्चर कितना काम आ रहा है? महामारी ने यह अवसर दिया है कि अपनी प्राथमिकताएं बदलकर संकुचित, उग्र और छद्म राष्ट्रवाद को त्याग दिया जाए.