क्या 2019 की नरेंद्र मोदी सरकार 2014 की सरकार से अलग होगी?

क्या नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जल्द ही उन्हें हासिल जनादेश की ग़लत व्याख्या करने और उसको अपनी सारी कारस्तानियों पर जनता की मुहर मान लेने की ग़लती करने लगेगी?

क्या भाजपा की जीत को ‘भारत की जीत’ कहा जा सकता है?

नरेंद्र मोदी की जीत का भारत के लिए क्या अर्थ निकलता है? एक हद तक यह उन्हें और भाजपा को दावा करने का मौका देता है कि पिछले पांच सालों में उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसके प्रति जनता ने अपना विश्वास जताया है. पर क्या यह सच है?

हम भी भारत: बहराइच लोकसभा क्षेत्र में कुपोषण और बेरोज़गारी पर भारी सांप्रदायिकता

हम भी भारत की इस कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी बहराइच लोकसभा क्षेत्र में बच्चों के कुपोषण, ग़रीबी और बेरोज़गारी के मुद्दों पर ग़ैर सरकारी संगठन देहात एनजीओ के कार्यकारी अधिकारी जितेंद्र चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार सलीम सिद्दीक़ी, शिक्षिका डॉ. अनुपमा झा और वरिष्ठ पत्रकार अज़ीम मिर्ज़ा से चर्चा कर रही हैं.

भारतीय लोकतंत्र ने बहुत-सारी अलोकतांत्रिक शक्तियों को भी जन्म दिया है

पुस्तक समीक्षा: अपनी किताब ‘बदलता गांव बदलता देहात: नयी सामाजिकता का उदय’ में सत्येंद्र कुमार ग्रामीण भारतीय जीवन को देखने की बनी-बनाई समझ और उससे पैदा हुई बहसों से परे जाकर उसे उसके रोज़मर्रा के जीवन में समझने की कोशिश करते हैं.

क्यों राम जन्मभूमि की रट लगाने वाली जमातें अयोध्या की हनुमानगढ़ी का नाम नहीं लेतीं?

अयोध्या की ऐतिहासिक हनुमानगढ़ी ने आज़ादी के पहले से ही अपनी व्यवस्था में लोकतंत्र और चुनाव का ऐसा अनूठा और देश का संभवतः पहला प्रयोग कर रखा है, जिसका ज़िक्र तक करना सांप्रदायिक घृणा की राजनीति करने वालों को रास नहीं आता.

लोकसभा चुनाव का पलड़ा अभी किसी एक तरफ नहीं झुका है

राष्ट्रवाद और सैन्य बलों को चुनाव प्रचार में घसीटकर उनका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश मतदाताओं को आकर्षित करने की गारंटी नहीं है और इसका उलटा असर भी हो सकता है. चुनाव की तैयारी कर रहीं पार्टियों की रणनीति देखते हुए यह साफ़ हो रहा है कि कोई भी अपनी निर्णायक जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है.

सड़क से संसद: अलवर- कलाकंद की मिठास से लिंचिंग की कड़वाहट तक

सड़क से संसद की इस कड़ी में हम अलवर लोकसभा क्षेत्र में पहुंचे हैं. कलाकंद के लिए मशहूर अलवर हालिया सालों में यहां गोरक्षा के नाम पर हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं के लिए सुर्ख़ियों में रहा.

राष्ट्रवाद की आड़ लेकर सवालों को दबाया जा रहा है

मीडिया का एक बड़ा तबका, जिसका धर्म सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछना होना चाहिए, घुटने टेक चुका है और देश के कुछ सबसे शक्तिशाली लोगों ने चुप्पी ओढ़ ली है, लेकिन आम लोग ऐसा नहीं करने वाले हैं. उनकी आवाज़ ऊंचे तख़्तों पर बैठे लोगों को सुनाई नहीं देती, लेकिन जब वक़्त आता है वे अपना फ़ैसला सुनाते हैं.

सड़क से संसद: मेवात क्षेत्र के ग़मज़दा मेव मुसलमान

सड़क से संसद की इस कड़ी में कहानी नूह गांव के मेव मुसलमानों की. नीति आयोग द्वारा जारी देश के सबसे पिछड़े 101 ज़िलों की सूची में यह हिस्सा भी आता है. यहां के रहवासी ग़रीबी, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी के साथ सांप्रदायिकता से भी लड़ रहे हैं. वर्तमान सत्ता से नाराज़ ये लोग उम्मीद करते हैं कि इस बार क्षेत्र से आम चुनाव में खड़े हो रहे उम्मीदवार उनके मुद्दों को गंभीरता से उठाएंगे.

जब नेहरू ने कहा- वही संस्कृति के बारे में सबसे ज़्यादा बात कर रहे हैं, जिनमें इसका क़तरा तक नहीं है

पुस्तक अंश: 1950 में नेहरू ने लिखा, 'यूपी कांग्रेस कमेटी की आवाज़ उस कांग्रेस की आवाज़ नहीं है, जिसे मैं जानता हूं, बल्कि यह उस तरह की आवाज़ है जिसका मैं पूरी ज़िंदगी विरोध करता रहा हूं. कुछ कांग्रेसी नेता लगातार ऐसे आपत्तिजनक भाषण दे रहे हैं, जैसे हिंदू महासभा के लोग देते हैं.'

मेरे क्षेत्र में जातिवाद की बात की, तो पिटाई कर दूंगाः नितिन गडकरी

पुणे के पिंपड़ी चिंचवाड़ में एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि आर्थिक और सामाजिक समानता के आधार पर समाज को एक साथ लाने की ज़रूरत है और इसमें जातिवाद और सांप्रदायिकता की जगह नहीं है.

अगर हिंदू लड़की को कोई मुस्लिम छूता है तो उसका हाथ काट देना चाहिए: केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े

कर्नाटक के कांग्रेस नेता दिनेश राव ने उनकी इस टिप्पणी की आलोचना करते हुए केंद्रीय मंत्री या बतौर सांसद उनकी उपलब्धियों को लेकर सवाल पूछ लिया. इस पर हेगड़े ने उनकी शादी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह एक मुस्लिम महिला के पीछे चलते हैं.

भारत को नसीरुद्दीन शाह जैसे और लोगों की ज़रूरत है

जहां बॉलीवुड के अधिकतर अभिनेता सच से मुंह मोड़ने और चुप्पी ओढ़ने के लिए जाने जाते हैं, वहीं मुखरता नसीरुद्दीन शाह की पहचान रही है. उनका व्यक्तित्व उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की उस भीड़ से अलग करता है, जिसके लिए शक्तिशाली की शरण में जाना, गिड़गिड़ाते हुए माफ़ी मांगना और कभी भी मन की बात न कहना एक रिवाज़-सा बन चुका है.

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