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आम सहमति वापस लेने का अर्थ है कि सीबीआई मेघालय में अब किसी भी मामले की जांच राज्य सरकार की अनुमति के बिना नहीं कर पाएगी. विपक्ष द्वारा शासित राज्यों का आरोप है कि सीबीआई केंद्र की कठपुतली बन गई है. हालांकि मेघालय में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग सरकार होने के बावजूद ऐसा फैसला लिया गया है. फैसले के पीछे मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के भाई पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को वजह बताया जा रहा है.
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि न का मतलब न है, फिर बेशक शुरुआत में हामी क्यों न रही हो. सहमति नहीं होना पूर्व में दी गई सहमति को ख़त्म कर देता है. जबरन यौन संबंध असहमति से बने संबंध कहलाएंगे, जो आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दंडात्मक है.
अदालत एक 26 वर्षीय युवक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि पीड़िता आरोपी से प्रेम करती थी, यह नहीं माना जा सकता कि उसने शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी.
एक सुनवाई के दौरान ओडिशा हाईकोर्ट के जस्टिस एसके पाणिग्रही ने कहा कि आईपीसी की धारा 375 के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि कौन-सी परिस्थिति में 'सहमति' को 'असहमति' के तौर पर दर्ज किया जाता है, लेकिन इस धारा में उल्लिखित परिस्थितियों में विवाह के वादे पर बने यौन संबंध शामिल नहीं हैं. इसे लेकर दोबारा सोचने की ज़रूरत है.
शीर्ष अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बलात्कार और सहमति से बनाए गए यौन संबंध के बीच स्पष्ट अंतर होता है. अगर व्यक्ति अपने नियंत्रण के बाहर की किन्हीं परिस्थितियों के चलते महिला से शादी नहीं कर पाता, तो उसे बलात्कार नहीं मान सकते.
केंद्र सरकार ने कहा कि बलात्कार कानून में यह अपवाद या छूट है ताकि ‘विवाह संस्था’ की रक्षा की जा सके.