सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को मामले से जुड़े दस्तावेज़ न दिखाने के लिए ईडी को फटकार लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से सवाल किया कि कोई आरोपी ज़मानत मांगते समय अपना बचाव कैसे कर सकता है यदि उसके पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं जो उसके पक्ष में हैं.

ज़मानत देने वालों की कमी के कारण ज़मानत प्रभावित नहीं होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक ऐसे शख़्स की याचिका पर दिया, जिन्हें उनके ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में दर्ज 13 मामलों में ज़मानत मिलने और ज़मानत राशि होने के बावजूद पर्याप्त ज़मानतदार न जुटा पाने की वजह से जेल में रहना पड़ा था.

वक़्फ़ संशोधन विधेयक संविधान का उल्लंघन है

वक़्फ़ एक विशेष मुस्लिम क्षेत्र है क्योंकि यह सदियों से मुस्लिम संपत्तियों के दान से उपजा है, लेकिन मोदी सरकार इसे पचा नहीं पाई. वक़्फ़ संशोधन विधेयक के ज़रिये इस सरकार का मुस्लिम विरोधी चेहरा एक बार फिर सामने आया है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एससी/एसटी आरक्षण वर्गीकरण पर कहा- आंबेडकर के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं

1 अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को एससी और एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी थी ताकि इन श्रेणियों के भीतर सबसे पिछड़े समुदायों को निश्चित उप-कोटा के माध्यम से प्रतिनिधित्व मिल सके.

कुछ राज्यपाल ऐसी भूमिका निभा रहे हैं जो उन्हें नहीं निभानी चाहिए: जस्टिस नागरत्ना

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने एक कार्यक्रम में कहा कि दुर्भाग्य से आज भारत में कुछ राज्यपाल ऐसी भूमिका निभा रहे हैं, जो उन्हें नहीं निभानी चाहिए. उन्हें जहां सक्रिय होना चाहिए, वहां निष्क्रिय नजर आते हैं. सुप्रीम कोर्ट में उनके विरुद्ध दर्ज मामले उनकी संवैधानिक स्थिति की दुखद कहानी कहते हैं.

धर्म के नाम पर हिंसा करना लोकप्रिय हो गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने का ठेका न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को, न भाजपा को, न किसी राजनेता को मिला हुआ है. ये सभी स्वनियुक्त ठेकेदार हैं, जिनका सामाजिक आचरण हिंदू धर्म के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

जेल मैनुअल में जाति-आधारित नियमों पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई, नोडल अफसर तैनात करने का इरादा

शीर्ष अदालत द वायर की पत्रकार सुकन्या शांता द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपनी पड़ताल के आधार पर बताया है कि कई राज्यों के जेल मैनुअल जेलों में जाति-आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, जहां जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव किया जाता है.

क्या ब्रॉडकास्ट बिल प्रेस की आज़ादी पर शिकंजा कसने का हथियार है?

वीडियो: 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष बने ओम बिड़ला पर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं. इस बार क्या उनके बर्ताव में कोई बदलाव होगा. क्या ब्रॉडकास्ट बिल की तरह प्रेस को नियंत्रित करने वाले विधेयक पारित होते रहेंगे? द वायर की नेशनल अफेयर्स एडिटर संगीता बरुआ और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष गौतम लाहिरी के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.

लोकसभा के नतीजों से पता चलता है कि भारत हिंदू राष्ट्र नहीं है: अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भाजपा सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का विचार उचित है. भारत हिंदू राष्ट्र नहीं है, यह बात चुनाव के नतीजों से ही पता चलती है.

नए आपराधिक क़ानूनों पर रोक लगाकर हितधारकों से परामर्श करे केंद्र सरकार: तमिलनाडु सीएम

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि तीन नए आपराधिक क़ानून लागू करने से पहले राज्यों को उनके विचार व्यक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और इन्हें विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना संसद द्वारा पारित कर दिया गया.

लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस चुनाव ने निश्चय ही लोकतंत्र को सशक्त-सक्रिय किया है पर उसकी परवाह न करने वालों को फिर सत्ता में बने रहने का अवसर देकर अपने लिए ख़तरा भी बरक़रार रखा है.

जाति पर किस तरह बात करना जातिवाद है?

‘जातिविहीनता’ की सुविधा किसे है कि वह अपनी जाति की पहचान की मुखरता के बिना भी जीवन के हर मरहले पार करता जाए? किसे इसकी इजाज़त नहीं है? कविता में जनतंत्र स्तंभ की इक्कीसवीं क़िस्त.

दलितों का वोट है लेकिन राज उनका नहीं है

जनतंत्र में दलितों की भागीदारी क्या मात्र संख्या है या वे इस जनतंत्र की शक्ल भी तय कर सकते हैं? मतदान का जो समान अधिकार दलितों को मिला या उन्होंने लिया, वह भी ऐसे जनतंत्र का संसाधन बन गया जो पारंपरिक वर्चस्व को और मज़बूत करता है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की बीसवीं क़िस्त.

जनतंत्र ऐसी सामूहिकता की कल्पना है जिसमें सारे समुदायों की बराबर की हिस्सेदारी हो

जनतंत्र ख़ुद इंसाफ़ है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी के बारे में फ़ैसला करने के मामूली से मामूली आदमी के हक़ को स्वीकार करने और हासिल करने का अब तक ईजाद किया सबसे कारगर रास्ता है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की चौदहवीं क़िस्त.

लोकतंत्र ही नहीं हमारी मानवीयता में भी लगातार कटौती हो रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी अंचल इस समय भाजपा और हिंदुत्व के प्रभाव में है, लगभग चपेट में. इस दौरान सार्वजनिक व्यवहार में कुल पंद्रह क्रियाओं से ही काम चलता है. ये हैं: रोकना, दबाना, छीनना, लूटना, चिल्लाना, मिटाना, मारना, पीटना, भागना, डराना-धमकाना, ढहाना, तोड़ना-फोड़ना, छीनना, फुसलाना, भूलना-भुलाना.

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