आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने रिजर्व बैंक से आरटीआई के तहत नोटबंदी से संबंधित बैंक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों, विभिन्न खातों में जमा धन और लोगों द्वारा आदान-प्रदान की गई मुद्रा की कुल मात्रा के बारे में जानकारी मांगी थी.
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की नीतियों के चलते अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा न कि नोटबंदी से.
सरकार में हर कोई दूसरा टॉपिक खोजने में लगा है जिस पर बोल सकें ताकि रुपये और पेट्रोल पर बोलने की नौबत न आए. जनता भी चुप है. यह चुप्पी डरी हुई जनता का प्रमाण है.
जन गण मन की बात की 298वीं कड़ी में विनोद दुआ नोटबंदी पर आई हालिया रिपोर्ट पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर चर्चा कर रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री ने 15-20 पूंजीपतियों के लिए नोटबंदी की थी. यह ग़लती नहीं बल्कि छोटे उद्योगों और छोटे व्यापारियों पर हमला था.
जन गण मन की बात की 297वीं कड़ी में विनोद दुआ रिज़र्व बैंक द्वारा नोटबंदी पर दी गई वार्षिक रिपोर्ट पर चर्चा कर रहे हैं.
रिजर्व बैंक के दावे के उलट एसबीआई के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि 2000 और 500 के नए नोट आने के बावजूद नकली नोटों में इजाफा हो सकता है.
जन गण मन की बात की 296वीं कड़ी में विनोद दुआ नोटबंदी पर आरबीआई की हालिया रिपोर्ट और भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं पर चर्चा कर रहे हैं.
भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आई है कि नोटबंदी के वक्त 15.41 लाख करोड़ सर्कुलेशन में था, जिसमें से 15.31 लाख करोड़ वापस आ गया है. यानी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी का यह दावा कि नोटबंदी से ब्लैक मनी नष्ट हो जाएगा, बोगस निकल गया है.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आरबीआई की रिपोर्ट से फिर साबित हो गया कि नोटबंदी व्यापक स्तर की ‘मोदी मेड डिजास्टर’ थी.
नोटबंदी के समय 500 और 1,000 रुपये के 15.41 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकों के पास वापस आ चुके हैं.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशक हैं. एक आरटीआई के जरिए खुलासा हुआ था कि नोटबंदी के फैसले के बाद पांच दिन के भीतर बैंक से करीब 750 करोड़ रुपये बदलवाए गए थे.
केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के बाद महज पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक में असामान्य ढंग से जमा हुई बड़ी राशियों की जांच न कराना अजीब है, जबकि ऐसा करने के लिए नया बेनामी लेन-देन कानून भी है, जिसे बनाया ही इसी मकसद से गया है.
बैंक में गड़बड़ी न होने की नाबार्ड की सफ़ाई से साफ़ है कि इस संस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ऐसे समय जब सरकारी संस्थाएं और मीडिया चुप हों तो जनता को आगे आना चाहिए.
मुंबई के मनोरंजन ए रॉय ने आरटीआई से जानकारी प्राप्त की है कि 8 नवंबर को नोटबंदी लागू होने से लेकर 14 नवंबर तक अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में 745 करोड़ और राजकोट के ज़िला सहकारिता बैंक में 693 करोड़ जमा हुए.