केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि देश में 34 साल बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन किया गया है. नई शिक्षा नीति में पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कही गई है, साथ ही एमफिल को ख़त्म किया गया है.
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अनुसार 2020-21 शैक्षणिक वर्ष में 179 संस्थानों के बंद होने के अलावा पिछले पांच सालों में बड़ी संख्या में खाली रही सीटों के कारण इस साल क़रीब 134 संस्थानों ने अकादमिक सत्र की मंज़ूरी ही नहीं मांगी.
स्कूली शिक्षा से जुड़े कुछ अधिकारियों का कहना है कि वे दाखिले की तैयारी कर रहे हैं, कुछ पाठ्यक्रम छोटा करने पर ध्यान दे रहे हैं, तो कुछ परीक्षाओं को लेकर चिंतित हैं. लेकिन कोई भी बच्चों और शिक्षकों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ज़रूरतों पर बात करता नहीं दिखता.
आज सवाल ये नहीं है कि बच्चे इस बार इम्तिहानों में पास होंगे या नहीं, सवाल ये है कि यह देश और हम हिंदुस्तानी उनकी निगाहों में कितना फेल होते जा रहे है.
संरचनात्मक रूप से ऑनलाइन शिक्षण में विश्वविद्यालय की कोई भूमिका नहीं है, न तो किसी शिक्षक और न ही किसी विद्यार्थी को इसके लिए कोई संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं. यानी शिक्षा, जो सार्वजनिक और सांस्थानिक ज़िम्मेदारी थी वह इस ऑनलाइन मॉडल के चलते व्यक्तिगत संसाधनों के भरोसे है.
बचपन से ही सुनते आए हैं कि गुरु-शिष्य परंपरा के समाप्त हो जाने से ही शिक्षा व्यवस्था में सारी गड़बड़ी पैदा हुई है. लेकिन इस परंपरा की याद किसके लिए मधुर है और किसके लिए नहीं, इस सवाल पर विचार तो करना ही होगा.
कोविड-19 के चलते स्कूल बंद होने के बाद अब राज्य सरकारें मोबाइल और टीवी के ज़रिये छात्रों तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं. ऐसी कोशिश बिहार सरकार द्वारा भी की गई है, लेकिन आर्थिक-सामाजिक असमानता के बीच प्रदेश के सरकारी स्कूलों के बच्चों तक इन माध्यमों से शिक्षा पहुंचा पाना बेहद कठिन है.
ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट 2020 के मुताबिक स्कूल की टेक्स्टबुक में शामिल महिला छवियों की संख्या न सिर्फ पुरुषों की तुलना में कम होती हैं बल्कि महिलाओं को कम प्रतिष्ठित पेशों में अंतर्मुखी एवं दब्बू लोगों की तरह दर्शाया गया है.
वीडियो: प्रोफेसर सोना झरिया मिंज को झारखंड के दुमका स्थित सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय का नया कुलपति नियुक्त किया गया है. प्रो. मिंज जेएनयू में स्कूल ऑफ कम्प्यूटर एंड सिस्टम्स साइंसेज में प्रोफेसर हैं. उनसे द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
घटना मलप्पुरम के वलान्चेरी की है. पुलिस के अनुसार एक दिहाड़ी मज़दूर की यह 14 वर्षीय बेटी दसवीं में पढ़ती थी. सोमवार से राज्य में स्कूलों की ऑनलाइन कक्षाएं शुरू हुई थीं, घर में टीवी या स्मार्टफोन न होने के चलते वह इसमें हिस्सा न ले पाने के चलते परेशान थी.
दिल्ली विश्वविद्यालय ने घरेलू परीक्षाओं को 'ओपन बुक एग्जाम' मोड में लेने के निर्देश दिए हैं, जिसके लिए तकनीकी संसाधन अनिवार्य हैं. लेकिन असमान वर्गों से आने वाले छात्रों के पास ये संसाधन हैं, यह कैसे सुनिश्चित किया गया? अगर विश्वविद्यालय ने उन्हें दाखिले के समय लैपटॉप या स्मार्ट फोन मुहैया नहीं करवाया तो वह इनके आधार पर परीक्षा लेने की बात कैसे कर सकता है?
कोरोना संकट के दौर में शैक्षणिक संस्थानों के आगे जो चुनौती है उसमें ऑनलाइन एक स्वाभाविक विकल्प है. ऐसे समय में विद्यार्थियों से जुड़ना समय की ज़रूरत है, लेकिन इस व्यवस्था को कक्षाओं में आमने-सामने दी जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकल्प बताना भारत के भविष्य के लिए अन्यायपूर्ण है.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अध्ययन में कहा गया है कि स्कूल बंद होने का सबसे अधिक असर वंचित तबके के छात्रों एवं लड़कियों पर ज़्यादा पड़ रहा है. भारत में 32 करोड़ छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन प्रभावित हुआ है.
साल 2010 में शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने के बाद पहली बार सरकारों की कानूनी जवाबदेही बनी कि वे 6 से 14 साल सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करें. लेकिन इसी के साथ ही इस कानून की सबसे बड़ी सीमा यह रही है कि इसने सावर्जनिक और निजी स्कूलों के अन्तर्विरोध से कोई छेड़-छाड़ नहीं की.
वीडियो: हाल ही में रिलीज़ हुई 'अंग्रेज़ी मीडियम' फिल्म की समीक्षा कर रही हैं दामिनी यादव.