वीडियो: विवादित तीन कृषि क़ानूनों की संवैधानिकता जांचे बिना सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के क़दम की आलोचना हो रही है. विशेषज्ञों ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का ये काम नहीं है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर लकड़ियां एकत्र कर जलाई गईं और उसके चारों तरफ घूमते हुए किसानों ने नए कृषि क़ानूनों की प्रतियां जलाईं. इस दौरान प्रदर्शनकारी किसानों ने नारे लगाए, गीत गाए और अपने आंदोलन की जीत की प्रार्थना की. किसान एक महीने से ज्यादा समय से इन क़ानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं.
विवादित तीन कृषि क़ानूनों की संवैधानिकता जांचे बिना सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के क़दम की आलोचना हो रही है. विशेषज्ञों ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का ये काम नहीं है. इससे पहले ऐसे कई केस- जैसे कि आधार, चुनावी बॉन्ड, सीएए को लेकर मांग की गई थी कि इस पर रोक लगे, लेकिन शीर्ष अदालत ने ऐसा करने से मना कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की इस स्वीकारोक्ति से पहले पिछले कुछ महीनों में कई भाजपा नेता किसान आंदोलन में खालिस्तानियों के शामिल होने का आरोप लगा चुके हैं. यहां तक कैबिनेट मंत्री रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल और कृषि नरेंद्र तोमर ने भी इस संबंध में माओवादी और टुकड़-टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कृषि क़ानूनों पर रोक लगाते हुए किसानों से बात करने के लिए समिति बनाने के निर्णय पर किसान संगठनों ने कहा कि वे इस समिति को मान्यता नहीं देते. जब तक क़ानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि क़ानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच गतिरोध दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई समिति में भाकियू के भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं. इन चारों द्वारा नए कृषि क़ानूनों का समर्थन किया गया है.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कई याचिकाओं को सुनते हुए सीजेआई एसए बोबड़े ने कहा कि सरकार जिस तरह से मामले को संभाल रही है उससे वे बेहद निराश हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार कहे कि क़ानूनों को लागू करने पर रोक लगाएगी, तो अदालत इसके लिए समिति गठित करने को तैयार है.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के बड़ौत में किसानों के धरने में पहुंचकर कहा कि 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में एक तरफ टैंक चलेंगे और दूसरी तरफ कृषि क़ानूनों की वापसी की मांग पर हमारे तिरंगा लगे हुए ट्रैक्टर.
तीन कृषि क़ानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच अब तक हुई आठ दौर की वार्ता में भी गतिरोध ख़त्म नहीं होने को अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की की व्यक्तिगत असफलता बताया है.
मृतक किसान की पहचान 39 वर्षीय किसान अमरिंदर सिंह के रूप में हुई. वह पंजाब में फतेहगढ़ साहिब के मचराई कलां गांव के रहने वाले थे. केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग पर किसान एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
वीडियो: वॉट्सऐप ने अपनी सेवा शर्तों और प्राइवेसी नीति में बदलाव किया है. वह अपने यूज़र्स के डेटा/कंटेंट का ज़्यादा व्यापक इस्तेमाल चाहता है. दूसरी तरफ न्यूज़ चैनलों पर वैक्सीन-वैक्सीन के शोर के बीच किसान आंदोलन को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. मीडिया बोल की इस कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे और टीवी पत्रकार व लेखक डॉ. मुकेश कुमार से उर्मिलेश की बातचीत.
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस के मद्देनज़र कृषि क़ानूनों के विरोध में बड़ी संख्या में दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या प्रदर्शनकारियों को कोविड-19 से बचाने के लिए एहतियाती कदम उठाए गए हैं.
इससे पहले किसानों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही थी. किसान जहां तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं, तो दूसरी ओर सरकार क़ानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करने पर अडिग नज़र आ रही है.
नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बैठे किसानों को पंजाब के गायकों का भी व्यापक समर्थन मिल रहा है. नवंबर के अंत से जनवरी के पहले सप्ताह तक विभिन्न गायकों के दो सौ अधिक ऐसे गीत आ चुके हैं, जो किसानों के आंदोलन पर आधारित हैं.
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर कई राज्यों के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं में एक महीने से अधिक समय से विरोध कर रहे हैं