वीडियो: किसानों और उनके आंदोलन के ख़िलाफ़ सिर्फ सरकारी एजेंसियां ही अभियान नहीं चला रही हैं, टीवी चैनलों के ज़रिये उनकी छवि बिगाड़ने और देश विरोधी बताने के लिए झूठी कहानियां चलाई जा रही हैं. इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह और पंजाब के स्वतंत्र पत्रकार शिव इंदर सिंह से उर्मिलेश की बातचीत.
किसान आंदोलन में शामिल कई लोगों को एनआईए का समन मिलने के बाद कांग्रेस और अकाली दल ने केंद्र की आलोचना की है. सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि जब खालसा एड ने गुजरात में सहायता की, तब सरकार को उसमें कुछ ग़लत नहीं लगा पर अब किसानों की मदद करने वालों के पीछे एनआईए लगा दिया गया.
मथुरा से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन को लेकर कहा था कि किसानों को पता नहीं है कि वे क्या चाहते हैं क्योंकि उनके पास कोई एजेंडा नहीं है. उन्हें विपक्षी दलों द्वारा अपने हितों को साधने के लिए भड़काया जा रहा है.
किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली या गणतंत्र दिवस समारोहों को बाधित करने की कोशिश करने के अन्य प्रदर्शनों पर रोक लगाने की केंद्र की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह क़ानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला है और फ़ैसला लेने का पहला हक़ पुलिस को है कि राष्ट्रीय राजधानी में किसे प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए.
शिरोमणि अकाली दल में शामिल हुए नेताओं ने कहा कि उन्होंने पहले ही भाजपा को चेतावनी दी थी कि वे किसान विरोधी कृषि क़ानून वापस लें, लेकिन ऐसा करने के बजाय उल्टा क़ानूनों का समर्थन करने को कहा गया.
पिछले कुछ दिनों में एनआईए द्वारा कम से कम 13 लोगों को नोटिस भेजा गया है. इनमें किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा, पंजाबी अभिनेता और कार्यकर्ता दीप सिंधू, पंजाब के एक टीवी पत्रकार जसबीर सिंह और कार्यकर्ता गुरप्रीत सिंह शामिल हैं.
किसान संगठनों ने कहा कि वे गतिरोध को दूर करने के लिए सीधी वार्ता जारी रखने को प्रतिबद्ध हैं. दूसरी ओर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि नौवें दौर की वार्ता सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका. उन्होंने उम्मीद जताई कि 19 जनवरी को होने वाली बैठक में किसी निर्णय पर पहुंचा जा सकता है.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के बड़ौत में किसानों के धरने में पहुंचकर कहा कि 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में एक तरफ टैंक चलेंगे और दूसरी तरफ कृषि क़ानूनों की वापसी की मांग पर हमारे तिरंगा लगे हुए ट्रैक्टर.
इससे पहले किसानों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही थी. किसान जहां तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं, तो दूसरी ओर सरकार क़ानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करने पर अडिग नज़र आ रही है.
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर कई राज्यों के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं में एक महीने से अधिक समय से विरोध कर रहे हैं
केंद्र सरकार से शुक्रवार को होने वाली आठवें दौर की बातचीत से पहले हज़ारों किसानों ने दिल्ली और हरियाणा में ट्रैक्टर मार्च निकाला. किसानों का कहना है कि 26 जनवरी को हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से राष्ट्रीय राजधानी में आने वाले ट्रैक्टरों की प्रस्तावित परेड से पहले यह महज़ एक रिहर्सल है.
भारतीय किसान यूनियन के नेता युधवीर सिंह ने कहा, ‘मंत्री चाहते हैं कि हम क़ानून पर बिंदुवार चर्चा करें. हमने ऐसा करने से इनकार कर दिया और कहा कि क़ानूनों पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं बनता, क्योंकि हम चाहते हैं कि क़ानून पूरी तरह से वापस हों. सरकार हमें संशोधनों की ओर ले जाना चाहती है, लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’