सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं के औचित्य पर सवाल उठाते हुए केंद्र ने कहा है कि ‘विवाह’ जैसे मानवीय संबंधों की मान्यता अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, अदालतें न्यायिक व्याख्या के माध्यम से या मौजूदा क़ानूनी ढांचे को ख़त्म करके ‘विवाह’ नामक किसी भी संस्था को बना या मान्यता नहीं दे सकती हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट में विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के अनुरोध वाली कई याचिकाएं लंबित हैं, जिन पर 30 नवंबर को अंतिम सुनवाई होगी. इस साल फरवरी में केंद्र ने इन याचिकाओं को ख़ारिज करने की मांग करते हुए अदालत में तर्क दिया था कि भारत में विवाह 'पुराने रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों' पर निर्भर करता है.
दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर एक ओसीआई कार्डधारक के विदेशी मूल के जीवनसाथी को उसकी लैंगिकता की परवाह किए बिना ओसीआई पंजीकरण की अनुमति देने की मांग की गई है. उन्होंने तमाम विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक शादी को मान्यता प्रदान करने की गुज़ारिश की है.