समलैंगिक विवाह के लिए दायर याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर एक ओसीआई कार्डधारक के विदेशी मूल के जीवनसाथी को उसकी लैंगिकता की परवाह किए बिना ओसीआई पंजीकरण की अनुमति देने की मांग की गई है. उन्होंने तमाम विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक शादी को मान्यता प्रदान करने की गुज़ारिश की है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर एक ओसीआई कार्डधारक के विदेशी मूल के जीवनसाथी को उसकी लैंगिकता की परवाह किए बिना ओसीआई पंजीकरण की अनुमति देने की मांग की गई है. उन्होंने तमाम विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक शादी को मान्यता प्रदान करने की गुज़ारिश की है.

LGBT-Rights-India-PTI A file photo of supporters of the equal rights protesting the Decmeber 11, 2013 decision of the Supreme Court that upheld the section 377 of the Indian Penal Code. Jantar Mantar, New Delhi, 2013 - File Photo, PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते मंगलवार को केंद्र और न्यूयॉर्क स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावास से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें भारतीय विदेशी नागरिकता (ओसीआई) कार्डधारक के विदेशी मूल के जीवनसाथी को उसके लैंगिक या यौन अभिमुखता (सेक्सुअल ओरिएंटेशन) की परवाह किए बगैर ओसीआई पंजीकरण की अनुमति देने की मांग की गई है.

उन्होंने नागरिकता अधिनियम, 1955, विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत ऐसे विवाहों को मान्यता प्रदान करते हुए राहत देने की मांग की है.

याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है, भले ही व्यक्ति का जेंडर, लैंगिक या सेक्सुअल ओरिएंटेशन कुछ भी हो.

इसमें कहा गया है कि भारत में प्रभावी कानून, नियमों और नीतियों के तहत समलैंगिक विवाहों को कानूनी रूप से मान्यता दी जानी चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया है.

पीठ इस मामले में उन अन्य याचिकाओं के साथ 27 अगस्त को सुनवाई करेगी, जिनमें हिंदू, विशेष और विदेशी विवाह अधिनियमों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की गई है.

याचिकाकर्ता समलैंगिक दंपत्ति- जॉयदीप सेनगुप्ता (ओसीआई) एवं अमेरिकी नागरिक रसेल ब्लेन स्टीफंस और भारतीय नागरिक मारियो डी. हैं. मारियो समलैंगिक अधिकार विद्वान और कार्यकर्ता हैं, जो अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं.

अधिवक्ता करुणा नंदी, रुचिरा गोयल, उत्सव मुखर्जी, रागिनी नागपाल और अभय चित्रवंशी के जरिये दायर अपनी याचिका में तीनों ने अदालत को बताया कि सेनगुप्ता और स्टीफंस करीब 20 सालों से रिश्ते में हैं और छह अगस्त 2012 को उन्होंने न्यूयॉर्क में शादी भी कर ली थी, जिसे अमेरिका, फ्रांस और कनाडा में मान्यता प्राप्त है.

दंपति अब अपनी पहली संतान की तैयारी कर रहा है और जुलाई 2021 में उसके जन्म की उम्मीद है.

स्टीफंस अपने लिए ओसीआई दर्जा चाहते हैं और ऐसे में कानूनी स्थिति जानने के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून का इस्तेमाल किया, लेकिन जब मंत्रालयों से उन्हें इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की.

11.30am Queer Petition Final by The Wire

याचिका में कहा गया है कि चूंकि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7ए (1) (डी) विषमलैंगिक, समलैंगिक या समलैंगिक पार्टनर के बीच अंतर नहीं करता है, इसलिए एक व्यक्ति जिसने ओसीआई से विवाह किया है और जिसकी शादी पंजीकृत है, उन्हें ओसीआई कार्ड के लिए जीवनसाथी के रूप में आवेदन करने के लिए पात्र घोषित किया जाना चाहिए.

द हिंदू के अनुसार, याचिका में न्यूयॉर्क स्थित भारत के महावाणिज्य दूतावास को ओसीआई कार्ड के लिए आवेदन करने वाले ओसीआई के पति या पत्नी को महज समलैंगिक होने के आधार पर अयोग्य घोषित करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई है.

याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि उन्होंने शादी के दायरे से समलैंगिक विवाह को बाहर कर रखा है.

उन्होंने मांग की है कि इन कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान की जानी चाहिए.

इससे पहले केंद्र ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कोर्ट में कहा था कि हमारे कानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिकों के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह के लिए महिला और पुरुष होना जरूरी है.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर, 2018 को अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था.

अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे. हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)