गौहाटी हाईकोर्ट ने बोंगाईगांव के निवासी फोरहाद अली की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया, जिन्हें अक्टूबर 2019 में एक न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित कर दिया गया था. अदालत ने चिंता व्यक्त की कि कई मामलों में बिना कारण बताए या दस्तावेज़ों का उचित विश्लेषण किए बिना लोगों को विदेशी घोषित कर दिया गया होगा.
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम एनआरसी की अंतिम सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं थे. इस सूची के प्रकाशन के बाद से ही राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा और राज्य की भाजपा सरकार इस पर सवाल उठाते रहे हैं.
गौहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. खंडपीठ ने कहा कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ का सिद्धांत यानी किसी विषय पर अंतिम निर्णय दिए जाने के बाद मामला संबंधित पक्षों द्वारा दोबारा नहीं उठाया जा सकता, असम राज्य के विदेशी न्यायाधिकरणों पर भी लागू होता है.
असम के कछार ज़िले में उधारबंद के थालीग्राम गांव में रहने वाले श्यामा चरण दास के ख़िलाफ़ 2015 में मामला दर्ज किया गया था, लेकिन मई 2016 में उसकी मृत्यु हो गई थी. परिवार ने इस संबंध में मृत्यु प्रमाण पत्र जमा किया था और उसी साल सितंबर में इसी अधिकरण के सदस्य ने दास का मामला बंद कर दिया था.
असम के मोरीगांव ज़िले का मामला. 60 वर्षीय माणिक दास दिसंबर 2019 से विदेशी न्यायाधिकरण में नागरिकता साबित करने की क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे, जबकि उनका नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल था. उनके परिवार ने कहा कि मुक़दमे उन्हें मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी, जिससे उन्होंने आत्महत्या कर ली.
19 सितंबर 2017 को फॉरेन ट्रिब्यूनल-6 ने असम में कछार ज़िले के सोनाई के मोहनखल गांव की 23 वर्षीय सेफाली रानी दास को सुनवाई के दौरान पेश नहीं होने के बाद विदेशी घोषित कर दिया था. महिला के हाईकोर्ट का रुख़ करने के बाद उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का एक और मौका दिया गया था.
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दरांग ज़िले की 55 वर्षीय महिला को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने साल 2016 में भारतीय बताया था लेकिन 2021 में उन्हें इसी ट्रिब्यूनल ने 'विदेशी' घोषित कर दिया. इसके बाद से वे 19 अक्टूबर से तेजपुर जेल में बने डिटेंशन केंद्र में बंद हैं. कोर्ट ने 2021 के निर्णय को ख़ारिज करते हुए कहा कि दोनों फ़ैसलों में याचिकाकर्ता की पहचान समान है और एक ही व्यक्ति के संबंध में दूसरी राय क़ायम नहीं रखी जा सकती.
असम के एक विदेशी न्यायाधिकरण ने कछार ज़िले के एक परिवार के पांच सदस्यों को अप्रैल 2018 में दिए एकतरफा आदेश में विदेशी घोषित कर दिया था. गौहाटी हाईकोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह सिद्ध करने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए कि वे भारतीय हैं न कि विदेशी.
ये मामला असम के मोरीगांव ज़िले के मोइराबारी निवासी असोरुद्दीन से जुड़ा हुआ है, जिन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में बुलाया गया था, लेकिन वह उपस्थित नहीं हो सके थे और ट्रिब्यूनल ने उनका पक्ष जाने बिना ही उन्हें विदेशी घोषित कर दिया था.
असम में साल 2012 में बोडो और बांग्ला भाषी मुस्लिमों के भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इस दौरान विस्थापित हुए एक परिवार की तस्वीर को राज्य सरकार के गृह विभाग ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के बारे में जानकारी देते हुए अपने पेज पर लगाया है.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा को बताया कि असम में विदेशी नागरिकों से जुड़े मामलों का निस्तारण करने वाले न्यायाधिकरण के समक्ष ‘डाउटफुल वोटर्स’ के 83,008 मामले लंबित हैं.
धर्म के आधार पर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के शासकीय अधिवक्ताओं को नियुक्त करने से पहले राज्य सरकार सीमाई ज़िलों में एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों की दर को लेकर कई बार नाख़ुशी ज़ाहिर कर चुकी है.
साल 2018 में गिरफ़्तार किए गए एक कथित बांग्लादेशी नागरिक और उनकी बेटी को ज़मानत देते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे नागरिकों के बरी या रिहा होने के बाद भी प्रशासन द्वारा उचित ट्रिब्यूनल के सामने ऐसे लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया कि असम में 290 महिलाओं को विदेशी घोषित किया गया है. वहीं, 181 घोषित विदेशियों और 44 सजायाफ्ता विदेशियों ने असम में नजरबंदी में तीन साल से अधिक समय पूरा कर लिया है.