पुस्तक समीक्षा: हुमरा क़ुरैशी की किताब ‘द इंडियन मुस्लिम्स- ग्राउंड रियालिटीज़ ऑफ लार्जेस्ट मायनॉरिटी इन इंडिया’ आजा़दी की 75वीं सालगिरह मनाने के इस दौर में ‘हिंदोस्तां के मुसलमान’ किस तरह अपने सबसे ‘स्याह दौर’ से गुजर रहे हैं, इसका ज़िक्र करते हुए यह आशंका ज़ाहिर करती है कि ‘अगर सांप्रदायिक विषवमन नियंत्रित नहीं किया गया तो आपसी विभाजन बदतर हो जाएगा.’
असम में ज़मीन से ‘बाहरी’ लोगों की बेदख़ली मात्र प्रशासनिक नहीं, राजनीतिक अभियान है. बेदख़ली एक दोतरफा इशारा है. हिंदुओं को इशारा कि सरकार उनकी ज़मीन से बाहरी लोगों को निकाल रही है और मुसलमानों को इशारा कि वे कभी चैन से नहीं रह पाएंगे.
एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की जांच में पता चला है कि असम के दरांग जिले में 21 सितंबर को प्रशासन द्वारा बेदख़ली अभियान के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में जिन तीन लोगों को गोली लगी थी, उनके शरीर से 27 सितंबर तक गोलियां नहीं निकाली गई थीं.
असम के दरांग ज़िले के सिपाझार में 23 सितंबर को राज्य सरकार द्वारा एक कृषि परियोजना के लिए अधिग्रहीत ज़मीन से कथित ‘अवैध अतिक्रमणकारियों’ को हटाने के दौरान पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच झड़प हो गई थी. इस दौरान पुलिस की गोलीबारी में 12 साल के बच्चे सहित दो लोगों की मौत हुई, जबकि नौ पुलिसकर्मियों सहित 15 लोग घायल हुए थे.
घटना दरांग ज़िले के सिपाझार की है, जहां पुलिस ने अतिक्रमण हटाने के एक अभियान के दौरान गोलियां चलाईं, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. पुलिस का दावा है कि स्थानीय लोगों ने उन पर हमला किया था, जिसके बाद उन्हें बल प्रयोग करना पड़ा. राज्य सरकार ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं.
असम के दरांग ज़िले के धालपुर में स्थानीय प्रशासन ने सैकड़ों परिवारों के घरों को ढहा दिया है, जिसके चलते वे कोरोना महामारी के बीच दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर हैं. पिछले तीन महीने में ऐसा दूसरी बार हुआ जब धालपुर के लोगों को बेदख़ल किया गया है. यहां ज़्यादातर पूर्वी बंगाल के मूल वाले मुसलमान रहते हैं.