कोविड से मारे गए लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत आर्थिक मदद की एक निश्चित राशि तय करने का निर्देश केंद्र को नहीं दे सकती लेकिन सरकार कोविड-19 से मारे गए लोगों के परिवारों को दी जाने वाली आर्थिक मदद की राशि का न्यूनतम मानदंड हर पहलू को ध्यान में रखते हुए निर्धारित कर सकती है. इससे पहले वायरस से जान गंवा चुके लोगों के परिवार को चार-चार लाख रुपये का मुआवज़ा देने की मांग पर केंद्र ने असमर्थता जताई थी.

केंद्र सरकार लैटरल एंट्री के ज़रिये संयुक्त सचिव और निदेशक पद पर नियुक्तियां करेगा

लैटरल एंट्री के तहत विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव पद पर तीन और निदेशक स्तर के पदों पर 27 नियुक्तियां होनी हैं. लैटरल एंट्री सरकारी विभागों में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति से संबंधित है. इसके तहत ऐसे लोगों को आवेदन करने योग्य माना गया है, जिन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा पास नहीं की है.

न्यायपालिका को अवमानना सुनवाई पर कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के ख़िलाफ़ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे ने कहा कि आलोचना के लिए न्यायपालिका को तैयार होना चाहिए, क्योंकि अवमानना की सुनवाइयों में कीमती न्यायिक समय बर्बाद होता है और ज़रूरी मुद्दे नहीं सुने जाते.

लोकतंत्र में सरकारी कार्यालयों को आलोचना का सामना करना पड़ता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के ख़िलाफ़ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर हम युवाओं को उनके विचार अभिव्यक्त नहीं करने देंगे तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि वे जो अभिव्यक्त कर रहे हैं, वह सही है या ग़लत.

क्या सरकार को मिड-डे मील योजना के लिए अक्षय-पात्र जैसी संस्थाओं की ज़रूरत है?

कर्नाटक में मिड-डे मील योजना के लगभग 40 लाख लाभार्थी बच्चों में से क़रीब 10 प्रतिशत को अक्षय-पात्र फाउंडेशन नाम की संस्था भोजन मुहैया कराती है. हाल ही में इस संस्था में धांधली के आरोप लगे हैं. साथ ही यह संस्था अंडे जैसे पौष्टिक आहार को भी इस योजना से जोड़ने के ख़िलाफ़ रही है.

समाचार एजेंसियां, डिजिटल मीडिया, न्यूज़ एग्रीगेटर्स 26 फीसदी एफडीआई नियम का अनुपालन करें: सरकार

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल अगस्त में प्रिंट मीडिया की तरह ही डिजिटल मीडिया के माध्यम से समाचार या सूचनाएं अपलोडिंग या स्ट्रीमिंग के क्षेत्र में सरकारी मंज़ूरी मार्ग से 26 प्रतिशत एफडीआई निवेश की अनुमति दे दी थी.

दलितों ने जो अधिकार संघर्ष से हासिल किए थे, आज वो सब खोते जा रहे हैं

बहुत सारे अधिकार संविधान सभा की बहसों से निकले थे, जब भारतीय संविधान बना तो उसमें उन अधिकारों को लिख दिया गया और बहुत सारे अधिकार बाद में दलितों ने अपने संघर्षों-आंदोलनों से हासिल किए थे. हालांकि दलितों का बहुत सारा समय और संघर्ष इसी में चला गया कि राज्य ने उन अधिकारों को ठीक से लागू नहीं किया.

राजस्थान: क्यों कोरोना वायरस के कारण घरेलू कामगार महिलाओं की समस्याएं और बढ़ गई हैं

कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के बाद घरेलू कामगार महिलाओं की आर्थिक हालत ख़राब है. काम न होने, मालिकों द्वारा मज़दूरी घटाने, सामाजिक भेदभाव के साथ-साथ ये वर्ग सरकार की उदासीनता से भी प्रताड़ित है.

कोविड-19 और लॉकडाउन के दौरान एक करोड़ से अधिक प्रवासी कामगार अपने राज्य लौटे: सरकार

लोकसभा में सरकार की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के चलते लागू लॉकडाउन के चलते सबसे ज़्यादा प्रवासी मज़दूर उत्तर प्रदेश, उसके बाद बिहार फिर पश्चिम बंगाल लौटे हैं.

आर्थिक असमानता लोगों को मजबूर कर रही है कि वे बीमार तो हों पर इलाज न करा पाएं

सबसे ग़रीब तबकों में बाल मृत्यु दर और कुपोषण के स्तर को देखते हुए यह समझ लेना होगा कि लोक सेवाओं और अधिकारों के संरक्षण के बिना न तो ग़ैर-बराबरी ख़त्म की जा सकेगी, न ही भुखमरी, कुपोषण और बाल मृत्यु को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा.

उदारीकरण के बाद बनीं आर्थिक नीतियों से ग़रीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती गई

जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.