अयोध्या पुलिस के अनुसार, कुछ असामाजिक तत्वों ने मांस के टुकड़े, एक धार्मिक ग्रंथ के कुछ फटे पन्ने और मुस्लिमों के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर लिखे गए कुछ पत्रों को शहर की कुछ मस्जिदों और मज़ार के पास फेंककर सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की थी. पुलिस का कहना है कि गिरफ़्तार किए गए लोग ‘हिंदू योद्धा संगठन’ से जुड़े हुए लोग हैं. इसके संचालक हिस्ट्रीशीटर महेश मिश्रा हैं.
देश के 100 से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि देश में नफ़रत से भरी तबाही का उन्माद सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही नहीं बल्कि संविधान को भी निशाना बना रहा है.
यह दरगाह मध्य प्रदेश नीमच ज़िले में रतनगढ़ पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत वन क्षेत्र में एक सुनसान इलाके में स्थित है. आरोप है कि बीते 2-3 अक्टूबर की दरमियानी रात में 20 से अधिक नक़ाबपोश लोगों ने कथित रूप से इस दरगाह को निशाना बनाया था. हमलावरों ने मौके पर एक पर्चा भी छोड़ा है, जिसमें कहा गया है कि दरगाह में हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराकर मुसलमान बनाया जाता है, जो सनातन धर्म के ख़िलाफ़ है.
मुसलमान विरोधी घृणा से मुक्ति फ़ौरी राष्ट्रीय काम है. इसमें पहले ही 70 साल की देर हो चुकी है. अब और देर नहीं की जा सकती. अगस्त के महीने में यह नहीं हो सकता कि चीखें भारत के आसमान को ढंक लें: मुझे बचाओ और आप स्वाधीनता के बैंड बाजे के शोर से उन चीखों को दबा दें. स्वाधीनता का ऐसा पतन हमें क़बूल नहीं होना चाहिए.
बीते 23 जुलाई को फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन के अलावा विभिन्न क्षेत्रों की 49 हस्तियों ने देश में धार्मिक पहचान के कारण घृणा अपराधों और मॉब लिंचिंग के बढ़ते मामलों पर चिंता प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था.
गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन और कारोबारी आदि गोदरेज ने कहा कि देश में सब कुछ ठीक नहीं है. हम एक ऐसे भारत की उम्मीद करते हैं जहां भय और संदेह का माहौल नहीं हो और राजनीतिक नेतृत्व पर जवाबदेह होने का भरोसा कर सकें.
कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए गरीबों को 72 हज़ार रुपये सालाना देने और किसानों के लिए अलग बजट के प्रावधान का वादा किया. पार्टी ने क़र्ज़ न चुका पाने वाले किसानों के ख़िलाफ़ फौजदारी नहीं, दीवानी अपराध का केस दर्ज करने की बात कही है.
प्रधानमंत्री के नाम लिखे एक पत्र में रिटायर्ड नौकरशाहों ने कहा कि यह पत्र केवल सामूहिक शर्म या अपनी पीड़ा को आवाज़ देने के लिए नहीं बल्कि सामाजिक जीवन में ज़बरदस्ती घुसा दिए गए घृणा और विभाजन के एजेंडा के ख़िलाफ़ लिखा गया है.
सांप्रदायिकता से इसलिए मत लड़िए कि कांग्रेस-बीजेपी करना है. ये पार्टियां या तो चुप रहकर सांप्रदायिकता करती हैं या फिर खुलेआम. इनके आने-जाने से यह लड़ाई कभी अंजाम पर नहीं पहुंचती है.
जिस समाज में प्रेम के ख़िलाफ़ इतने सारे तर्क हों, उस समाज को अंकित की हत्या पर कोई शोक नहीं है, वह फ़ायदे की तलाश में है.