हिंदी पत्रिकाएं समसामयिक सवालों से बचती रहीं और आधुनिकतावाद का डट कर सामना करने की बजाय सांप्रदायिक पहचान के निकट आती गईं. ‘क्या उपन्यास/ कहानी/ नई कहानी/नाटक मर गया?’ जैसे सवालों पर बहसियाने या छायावाद पर मुहल्ला-छाप लड़ाई लड़ना उन्हें आसान पड़ता था, उन्होंने वही किया.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अच्छा साहित्य हमें हमेशा वहां ले जाता है जहां भाषा पहले न गई हो: वह हमारी अनुभूति और अभिव्यक्ति के भूगोल को विस्तृत करता है. साहित्य हमें अधिकार और शक्ति के सभी प्रतिष्ठानों से, फिर वे राज्यपरक हों या धर्म, प्रश्न पूछने की हिम्मत देता है.