कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी अंचल में साहित्य का धर्मों से संवाद लगभग समाप्त हो गया है. इस विसंवादिता ने साहित्य को उस बड़े सामाजिक यथार्थ से विमुख कर दिया जो अपने विकराल राजनीतिक विद्रूप में, बेहद हिंसक और क्रूर ढंग से हमें आक्रांत कर रहा है.
आगामी 17 से 21 दिसंबर तक यति नरसिंहानंद की अध्यक्षता में विश्व धर्म संसद होने जा रही है. इसकी वेबसाइट कहती है कि इस्लाम की समाप्ति के लिए यह कार्यक्रम किया जा रहा. क्या हिंदू धर्म का अपने आप में अस्तित्व नहीं है कि ये लोग धर्म की विरोधात्मक परिभाषा दे रहे हैं?
पुस्तक अंश: हिंदू धर्म विभिन्न विचारों को आत्मसात करता आया है. कई मान्यताएं और प्रथाएं अपने प्राचीन रूप में हैं और उनके स्रोतों का पता लगाना कठिन है. धर्म का यह स्वरूप पूजा के विधि-विधानों के बजाय दार्शनिक स्तर पर अधिक पाया जा सकता है. असहमति की अधिकांश परंपराएं विविधता को पोषित करती रही हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदुत्व के प्रतिपादक और उसके अनुयायी किसी हिंदू अध्यात्म या चिंतन परंपरा का कभी उल्लेख नहीं करते. असल में तो हिंदुत्व एक शुद्ध राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म में घुसपैठ कर रही है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: वर्ण भेद की सामाजिक व्यवस्था का इतनी सदियों से चला आना इस बात का सबूत है कि उसमें धर्म निस्संदेह और निस्संकोच लिप्त रहा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट मोहम्मद अब्दुल खलीक़ की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने उनके ख़िलाफ़ दर्ज गो-हत्या के मामले को रद्द करने की मांग की थी, जिसे अदालत ने ख़ारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने और इसे ‘संरक्षित राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने के लिए उचित निर्णय ले.
भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका के मक़सद पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्रिटिश देश में 'फूट डालो और राज करो' की नीति लाए थे, जिसने समाज को तोड़ा. हमें इसे दोबारा ऐसी याचिकाओं से नहीं तोड़ना चाहिए...
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि श्रम के प्रति सम्मान की भावना की कमी देश में बेरोज़गारी के मुख्य कारणों में से एक है. उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर की दृष्टि में हर कोई समान है और उसके सामने कोई जाति या संप्रदाय नहीं है. यह सब पंडितों ने बनाया, जो ग़लत है.
बीते दो फरवरी को बाड़मेर में संतों की एक सभा में बाबा रामदेव ने हिंदू धर्म की तुलना इस्लाम और ईसाई धर्म से करते हुए मुस्लिमों पर आतंक का सहारा लेने और हिंदू लड़कियों का अपहरण करने का आरोप लगाया था.
राजस्थान के बाड़मेर में हिंदू नेताओं की एक सभा में रामदेव को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि मुसलमानों का मानना है कि नमाज़ ‘हिंदू लड़कियों के अपहरण और आतंकवाद’ सहित सभी पापों को धो देती है. ईसाई धर्म के बारे में उन्होंने कहा कि चर्च में जाओ, मोमबत्ती जलानी हो, जलाओ और ईसा मसीह के सामने खड़े हो जाओ, सारे पाप नष्ट हो जाएंगे.
तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित प्रख्यात शास्त्रीय नृत्यांगना और कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई ने कोलकाता साहित्य महोत्सव के समापन पर कहा कि कोलकाता आकर विभिन्न धर्मों के लोगों को वास्तव में साथ-साथ रहते देख बहुत अच्छा लग रहा है. मुझे गुजरात में, अहमदाबाद में ऐसा नहीं दिखता.
नए साल में असल चिंता का विषय है, भारत में ऐसे हिंदू दिमाग़ का निर्माण जो श्रेष्ठतावाद के नशे में चूर है. मुसलमान मित्रविहीन अवस्था में है. चंद बुद्धिजीवी ही उसके साथ हैं. कश्मीर में मुसलमानों को अधिकार से वंचित किया जा रहा है. असम में उसे कोने में धकेला जा रहा है और पूरे देश में क़ानूनों और ग़ुंडों के गठजोड़ के ज़रिये उसे प्रताड़ित किया जा रहा है.
भाजपा नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने एक बयान में कहा है कि कोई भी व्यक्ति राम, हनुमान या हिंदू धर्म पर आस्था रखता है या रख सकता है, अंतर सिर्फ़ इतना है कि इन पर हमारी आस्था राजनीतिक लाभ-हानि से परे होती है.
आज के भारत में ख़ासकर हिंदुओं के लिए ज़रूरी है कि वे ग़ैर हिंदुओं के धर्म, ग्रंथों, व्यक्तित्वों, उनके धार्मिक आचार-व्यवहार को जानें. मुसलमान, ईसाई, सिख या आदिवासी तो हिंदू धर्म के बारे में काफ़ी कुछ जानते हैं लेकिन हिंदू प्रायः इस मामले में सिफ़र होते हैं. बहुत से लोग मोहर्रम पर भी मुबारकबाद दे डालते हैं. ईस्टर और बड़ा दिन में क्या अंतर है? आदिवासी विश्वासों के बारे में तो हमें कुछ नहीं मालूम.
सवर्ण समाज झूठ बोलता रहा है कि वह समानता के उसूल को मानता है. उसने किसी भी स्तर पर दलितों के साथ साझेदारी से इनकार किया. दलितों का हिंदू बने रहना मात्र एक जगह उपयोगी है- कि ‘मुसलमान, ईसाई’ के प्रति द्वेष और घृणा पर आधारित राजनीति के लिए ऐसे हिंदुओं की संख्या बढ़ती रहनी चाहिए.