वे सभी लोग जो नए कलेवर में प्रस्तुत संघ को लेकर प्रसन्न हो रहे हैं, उन्हें यह जानना होगा कि यह कोई पहली बार नहीं है जब संघ इस क़वायद में जुटा है. उन्हें 1977 के अख़बारों को पलट कर देखना चाहिए जब यह बात फैलाई जा रही थी कि संघ अब अपनी कतारों में मुसलमानों को भी शामिल करेगा. लेकिन यह शिगूफ़ा साबित हुआ.
संघ प्रमुख के हालिया बयानों की गंभीरता और विश्वसनीयता को इस कसौटी पर परखा जाना चाहिए कि आरएसएस से संबद्ध संगठन अपना आगामी चुनाव अभियान किस तरह से चलाते हैं.
अमेरिका की एक संसदीय रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हिंदू राष्ट्रवाद उभरता राजनीतिक बल है और देश की धार्मिक स्वतंत्रता पर नए हमलों की वजह बन रहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समुदाय से एकजुट होकर मानव कल्याण के लिए काम करने की अपील की.
हम देश के एक छोटे से क़स्बे में पले-बढ़े लेकिन उस दौर में लोगों का दिलो-दिमाग राजनीति ने इतना छोटा नहीं था, जबकि देश का विभाजन हुए बहुत अरसा भी नहीं बीता था. नफ़रत की ऐसी आग नहीं लगी हुई थी, जैसी आज लगी है.
राहुल गांधी की कांग्रेस को सिख दंगों से अलग करने की कोशिश वैसी ही है, जैसी मोदी ने विकास के नारे में गुजरात के दाग़ छुपाकर की थी.
1984 के राजीव गांधी और 1993 के नरसिम्हा राव की तरह वाजपेयी इतिहास में एक ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर भी याद किए जाएंगे, जिन्होंने पाठ तो सहिष्णुता का पढ़ाया, मगर बेगुनाह नागरिकों के क़त्लेआम की तरफ़ से आंखें मूंद लीं.
हाल ही में रिज़र्व बैंक के बोर्ड में शामिल हुए स्वामीनाथन गुरुमूर्ति की नरेंद्र मोदी के नोटबंदी जैसे आर्थिक नीति संबंधी फैसलों में महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ को दिए साक्षात्कार में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपनी सहयोगी दल भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि जिस प्रकार आज देश में हिंदुत्व का पालन किया जा रहा है, उसे शिवसेना स्वीकार नहीं करती.
भारत द्वारा संविधान अपनाए हुए सत्तर साल बीत चुके हैं. डॉ. आंबेडकर के मुताबिक इसने ‘मनु के शासन की समाप्ति की थी.’ लेकिन हिंदुत्ववादियों के बीच आज भी उसका सम्मोहन बरक़रार है.
जन गण मन की बात की 275वीं कड़ी में विनोद दुआ कांग्रेस नेता शशि थरूर के देश के हिंदू पाकिस्तान बनने को लेकर दिए गए बयान और आमों पर चर्चा कर रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री जैसे और भी कई हैं जो एक संपन्न और शिक्षित पृष्ठभूमि से आते हैं, जो दिखते उदारवादी हैं लेकिन जिनके मन में सांप्रदायिक सड़ांध भरी होती है.
जन गण मन की बात की 250वीं कड़ी में विनोद दुआ उपचुनावों के दौरान ईवीएम में आई ख़राबी और पिछले चार सालों के दौरान लोक विमर्श की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की 51वीं कड़ी में उर्मिलेश कोबरापोस्ट वेबसाइट द्वारा विभिन्न मीडिया संस्थानों पर किए गए स्टिंग ऑपरेशन और तमिलनाडु के तूतीकोरिन में हुई हिंसा पर राजस्थान पत्रिका के सलाहकार संपादक ओम थानवी और द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन से चर्चा कर रहे हैं.
टाइम्स समूह ने अपने बयान में कहा है, ‘हमें पता था कि कोबरापोस्ट का रिपोर्टर संदेहास्पद है. हमारे वरिष्ठ अधिकारियों ने उसकी सच्चाई जानने के लिए उसे लपेटे में लिया ताकि उसके पीछे कौन है, इसका पता लगाया जा सके.’