शीर्ष अदालत साल 2013 से गंगा पर नई जलविद्युत परियोजनाएं शुरू करने के सवाल पर विचार कर रही है. जहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति कह रही है कि प्रोजेक्ट से होने वाला लाभ संभावित नुक़सान से ज़्यादा है. पर्यावरण तथा वन मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय इसके खिलाफ हैं.
नदी, पहाड़, जैव-विविधता की अनदेखी कर बनी बड़ी हाइड्रो पावर परियोजनाओं से पैदा ऊर्जा को 'ग्रीन एनर्जी' कैसे कह सकते हैं? एक आकलन के अनुसार कई परियोजनाएं तो उनकी क्षमता की 25 प्रतिशत बिजली भी पैदा नहीं कर पा रही हैं. तो अगर ये परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं हैं, तो सरकार ज़िद पर क्यों अड़ी है?
भूगर्भ वैज्ञानिक निरंतर चेतावनी दे रहे हैं कि सभी ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न मौसमी बदलाव हो रहे हैं. ऐसे में तरह-तरह के हाइड्रोप्रोजेक्ट बनाने की ज़िद प्राकृतिक हादसों को आमंत्रण दे रही है. सबसे चिंताजनक यह है कि केंद्र या उत्तराखंड सरकार इन क्षेत्रों में लगातार हो रहे हादसों से कुछ नहीं सीख रही है.
विशेष रिपोर्ट: मोदी सरकार ने अक्टूबर 2018 में एक नोटिफिकेशन जारी किया था कि गंगा की ऊपरी धाराओं यानी कि देवप्रयाग से हरिद्वार तक बनी सभी पनबिजली परियोजनाओं को अलग-अलग सीजन में 20 से 30 फीसदी पानी छोड़ना होगा. आरोप है कि ऐसी परियोजनाएं बहुत कम मात्रा में पानी छोड़ते हैं, जिससे नदी के स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है.