भारतीयता, परंपरा और आधुनिकता का असल अर्थ क्या है

भारत में जिस दल की केंद्रीय स्तर पर सरकार है और जो ‘स्वयंसेवी संगठन’ वर्चस्व की स्थिति में है उसका दबाव अकादमिक कार्यक्रमों और लोगों के सामान्य वैचारिक निर्माण पर स्पष्ट है. इस प्रक्रिया में किसी शब्द के अर्थ को इतना संकुचित कर दिया जा रहा है कि उसकी अर्थवत्ता ही संदिग्ध हो जा रही है.

रोज़ डरती, ख़ुद से लड़ती फिर जीतती हुई एक इंक़लाबी की मां…

लगभग साल भर से दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में जेल में बंद उमर ख़ालिद की मां कहती हैं कि उसे बाहर आने पर हिंदुस्तान छोड़ देना चाहिए, लेकिन कुछ पलों बाद वो बदल-सी जाती हैं.

नाम छिपाकर कौन लोग जीते आए हैं और उनकी घुटन को किसने महसूस किया है?

पहचान की अवधारणा खालिस इंसानी ईजाद है. पहचान के लिए ख़ून की नदियां बह जाती हैं. पहचान का प्रश्न आर्थिक प्रश्नों के कहीं ऊपर है. उस पहचान को अगर कोई भूमिगत कर दे, तो उसकी मजबूरी समझी जा सकती है और इससे उसके समाज की स्थिति का अंदाज़ा भी मिलता है.