कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: परम स्वतंत्रता न तो जीवन में संभव है और न ही सृजन में. फिर भी सृजन में ऐसी स्वतंत्रता पा सकना संभव है जो व्यापक जीवन में नहीं मिलती या मिल सकती.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय की प्रचलित टेक्नोलॉजी और प्रविधियां तेज़ी और सफलता से यथार्थ को तरह-तरह से रचती रहती हैं. इस रचे गए यथार्थ का सच्चाई से संबंध अक्सर न सिर्फ़ क्षीण होता है बल्कि ज़्यादातर वे मनगढ़ंत और झूठ को यथार्थ बनाती हैं. हमारे समय में राजनीति, धर्म, मीडिया आदि मिलकर जो मनोवांछित यथार्थ रच रहे हैं उसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं होता. इस यथार्थ को प्रतिबिंबित करना झूठ को मानना और फैलाना होगा.