कश्मीर में सेना की हिरासत में नागरिकों की मौत संबंधी ‘कारवां’ की रिपोर्ट सरकार ने हटाने को कहा

‘कारवां’ पत्रिका को आईटी अधिनियम के तहत मिले एक नोटिस में कहा गया है कि अगर वह 24 घंटे के भीतर अपनी वेबसाइट से जम्मू कश्मीर में सेना द्वारा आम नागरिकों की कथित हत्या से संबंधित लेख नहीं हटाती है, तो पूरी वेबसाइट हटा दी जाएगी. पत्रिका ने इसे अदालत में चुनौती देने की बात कही है.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के ब्लॉकिंग आदेशों के ख़िलाफ़ ट्विटर की याचिका ख़ारिज की

ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट में आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती दी थी. अदालत ने इस तथ्य का हवाला दिया कि ट्विटर ने नोटिस दिए जाने के बावजूद सरकार के ब्लॉकिंग आदेशों का पालन नहीं किया. ​इसके ‘आचरण’ को लेकर अदालत ने 50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

सरकार ने किसान आंदोलन, कोविड प्रबंधन पर सवाल उठाने वाले एकाउंट ब्लॉक करने को कहा: ट्विटर

ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट में बताया कि सरकार ने उसे किसी ट्वीट के आधार पर पूरे एकाउंट को ब्लॉक करने के लिए कहा था, हालांकि आईटी अधिनियम की धारा 69 (ए) पूरे एकाउंट को ब्लॉक करने की अनुमति नहीं देती. धारा के तहत केवल सूचना या किसी विशेष ट्वीट को ब्लॉक करने की इजाज़त है.

2022 के छह महीनों में ट्विटर सामग्री ब्लॉक करने के सरकारी आदेश 2019 के आंकड़ों के पार

2014 से 2020 के बीच केंद्र की मोदी सरकार द्वारा विभिन्न सोशल मीडिया कंपनियों और टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं को जारी किए गए सामग्री हटाने या ब्लॉक करने संबंधी आदेशों की संख्या में लगभग 2,000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2014 में ऐसे आदेशों की संख्या 471 थी, जो कि 2020 में बढ़कर 9,849 पहुंच गई. यह भारत में बढ़ती ऑनलाइन सेंसरशिप की प्रवृत्ति को उजागर करता है.

मोहम्मद ज़ुबैर की हिरासत से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस से जवाब मांगा

दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को उस याचिका पर अपना जवाब दाख़िल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया, जिसमें निचली अदालत के 28 जून के आदेश को चुनौती दी गई है. निचली अदालत ने ज़ुबैर को चार दिन की पुलिस हिरासत में देने का आदेश दिया था. ज़ुबैर को एक ट्वीट के ज़रिये धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में बीते 27 जून को गिरफ़्तार किया था.

दिल्ली की अदालत ने पत्रकार ज़ुबैर की हिरासत चार दिन के लिए बढ़ाई

दिल्ली की अदालत ने 2018 के एक ट्वीट के सिलसिले में गिरफ़्तार किए गए ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर से पूछताछ के लिए हिरासत की अवधि चार दिन बढ़ाते हुए कहा कि उन्होंने जांच में 'सहयोग' नहीं किया है और उन्हें उनके उपकरण बरामद करने के लिए बेंगलुरु ले जाया जाना है.

एडिटर्स गिल्ड की ज़ुबैर की रिहाई की मांग, कहा- दुष्प्रचार करने वाले ऑल्ट न्यूज़ के ख़िलाफ़

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक और फैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किए जाने की निंदा करते हुए एडिटर्स गिल्ड ने उनकी फ़ौरन रिहाई की मांग की है. वहीं, ऑनलाइन प्रकाशकों के संगठन डिजिपब ने पत्रकारों के ख़िलाफ़ क़ानून के इस तरह इस्तेमाल को अनुचित बताते हुए पुलिस से मामला वापस लेने का आग्रह किया है.

ऑल्ट न्यूज़ वेबसाइट के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया

ऑल्ट न्यूज़ के एक अन्य सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने कहा कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मोहम्मद ज़ुबैर को 2020 में दर्ज एक मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन शाम को बताया गया कि उन्हें एक अन्य मामले में ​दर्ज एफ़आईआर के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया है. सूत्रों ने बताया कि गिरफ़्तारी हिंदू धार्मिक भावनाओं को कथित रूप से आहत करने के मामले में हुई है.

हिंदुत्ववादी नेताओं को ‘घृणा फैलाने वाला’ कहने वाले पत्रकार पर दर्ज केस रद्द करने से इनकार

ट्विटर पर तीन हिंदू संतों- यति नरसिंहानंद, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को कथित नफ़रत फैलाने वाला कहने पर ‘आल्ट न्यूज़’ वेबसाइट के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के ख़ैराबाद थाने में बीते एक जून को मामला दर्ज किया गया था. केस रद्द करने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में प्रतीत होता है कि ज़ुबैर ने अपराध किया है और मामले की जांच करने की ज़रूरत है.

कट्टर हिंदुत्व नेताओं को ‘घृणा फैलाने वाला’ कहने पर पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ एफआईआर

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने एक ट्वीट में हिंदुत्ववादी नेताओं- यति नरसिंहानंद, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को 'घृणा फैलाने वाला' बताया था. इसे लेकर 'राष्ट्रीय हिंदू शेर सेना' के ज़िला प्रमुख भगवान शरण की शिकायत पर यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ़ मामला दर्ज किया है.

आईटी अधिनियम की रद्द धारा 66ए के तहत मुक़दमे दर्ज किए जाने पर राज्यों को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने पांच जुलाई को इस बात पर हैरानी ज़ाहिर की थी कि लोगों के ख़िलाफ़ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत अब भी मुक़दमे दर्ज हो रहे हैं, जबकि शीर्ष अदालत ने 2015 में ही इस धारा को अपने फैसले के तहत निरस्त कर दिया था.

आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत मामले दर्ज न करने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर: केंद्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दिया था. बीते 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इसे ख़त्म किए जाने के बावजूद राज्यों द्वारा इस धारा के तहत केस दर्ज किए जाने पर हैरानी जताते हुए केंद्र सरकार नोटिस जारी किया था. इसके ख़िलाफ़ दायर याचिका में कहा गया है कि असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद भी धारा 66ए के तहत दर्ज होने वाले मामलों में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है.

गृह मंत्रालय ने राज्यों से कहा- आईटी क़ानून की धारा 66ए के तहत मामले दर्ज न किए जाएं

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दिया था. बीते 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इसे ख़त्म किए जाने के बावजूद राज्यों द्वारा इस धारा के तहत केस दर्ज किए जाने पर हैरानी जताते हुए केंद्र सरकार नोटिस जारी किया था.

रद्द होने के 6 साल बाद भी आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत केस दर्ज होने पर सुप्रीम कोर्ट हैरान

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66ए रद्द कर दिया था. इसके तहत कंप्यूटर या कोई अन्य संचार उपकरण जैसे मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने के लिए दंड निर्धारित किया गया और दोषी को अधिकतम तीन साल की जेल हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के ख़त्म किए जाने के बाद भी राज्यों द्वारा इसके तहत केस दर्ज किए जाने पर केंद्र सरकार नोटिस जारी किया है.