पेगासस प्रोजेक्ट: पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल को लेकर सामने आया लीक डेटा इस बात का पुख़्ता प्रमाण है कि भारत में इस स्पायवेयर का इस्तेमाल एक अज्ञात एजेंसी द्वारा सत्तारूढ़ भाजपा के प्रतिद्वंद्वियों की राजनीतिक जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है.
वीडियो: द वायर समेत 16 मीडिया संगठनों द्वारा की गई पड़ताल दिखाती है कि इज़रायल के एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर द्वारा स्वतंत्र पत्रकारों, स्तंभकारों, क्षेत्रीय मीडिया के साथ हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, द वायर, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे, द पायनियर जैसे राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया गया था. इस मुद्दे पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
पेगासस प्रोजेक्ट: 40 से ज़्यादा पत्रकारों, तीन प्रमुख विपक्षी नेताओं, नरेंद्र मोदी सरकार में दो पदासीन मंत्री, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं सहित 300 से अधिक भारतीयों की इज़राइल के एक सर्विलांस तकनीक से जासूसी कराने की ख़बरों को देश की हिंदी पट्टी के प्रमुख अख़बारों ने या तो छापा नहीं है या इस ख़बर को महत्व नहीं दिया है.
निगरानी के लिए संभावित निशाने पर 'कमेटी फॉर द रिलीज़ ऑफ पॉलिटिकल प्रिज़नर्स' भी थी, जिससे जुड़े शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं के फोन नंबर भी पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये हुए सर्विलांस वाले भारतीय फोन नंबरों की लीक हुई सूची में शामिल हैं.
द वायर समेत 16 मीडिया संगठनों द्वारा की गई पड़ताल दिखाती है कि इज़रायल के एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर द्वारा स्वतंत्र पत्रकारों, स्तंभकारों, क्षेत्रीय मीडिया के साथ हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, द वायर, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे, द पायनियर जैसे राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया गया था.
एक अंतरराष्ट्रीय साझा रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट ने यह दिखाया है कि भारत समेत दुनियाभर की कई सरकारें भयावहता की हद तक सर्विलांस के तरीकों का इस्तेमाल इस तरह से कर रही हैं, जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है.
शुरुआत में भारत ने नव-उपनिवेशवाद और इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनी ज़मीन के अतिक्रमण की मुखर तौर पर निंदा की, लेकिन यह विरोध धीरे-धीरे कम हो गया. भारत का रुख कमज़ोर हुआ क्योंकि इज़राइल के साथ आर्थिक और सैन्य संबंध जुड़ गए. अब ये रिश्ते हिंदुत्व व यहूदीवाद की लगभग समान विचारधारा पर फल-फूल रहे हैं.
ग़ाज़ा में इज़रायल और हमास के बीच 11 दिन तक चले संघर्ष के दौरान कथित उल्लंघनों एवं अपराधों की जांच शुरू करने के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव पर वोट डालने से भारत समेत 14 देश अनुपस्थित रहे. प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया क्योंकि 24 देशों ने इसके पक्ष में वोट डाला और नौ ने इसका विरोध किया. इज़रायल और हमास के बीच संघर्ष में ग़ाज़ा में लगभग 230 लोग और इज़रायल में 12 लोग मारे गए थे.
इस 11 दिन के ख़ूनी संघर्ष में ग़ाज़ा पट्टी में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई, इज़रायल के अधिकांश हिस्सों में जीवन थम गया था और दोनों तरफ के 200 से अधिक लोगों की जानें गईं. 19 मई तक इस संघर्ष में 208 फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें क़रीब 60 बच्चे शामिल हैं. वहीं इज़रायल में भी दो बच्चों सहित 12 लोगों की जान गई है.
इंसानियत का ज़िक्र कहीं तहखाने में फ़ेंक दी गई संवेदना को जगाने की ताक़त रखता है, इसीलिए सत्ता इस शब्द को बर्दाश्त नहीं कर सकती. बावजूद ऐतिहासिक दुरुपयोग के मानवता शब्द में एक विस्फोटक क्षमता है. इसे अगर ईमानदारी से इस्तेमाल करें, तो यह भीतर तक जमी बेहिसी की चट्टानी परतों को छिन्न-भिन्न कर सकता है.
रविवार को इजरायल ने गाजा में पिछले एक हफ़्ते में सबसे घातक हमला किया, जिसमें आठ बच्चों सहित 26 फ़लस्तीनी नागरिकों की मौत हो गई. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शनिवार शाम को कहा कि जब तक ज़रूरत पड़ेगी तब तक यह अभियान जारी रहेगा.
इज़राइल और उग्रवादी संगठन हमास के बीच जारी लड़ाई के दौरान वेस्ट बैंक में भी फ़लस्तीनियों ने व्यापक पैमाने पर प्रदर्शन किया और सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने कई शहरों में इज़राइली सेना के साथ झड़प की. इस दौरान इज़राइली सेना की कार्रवाई में कम से कम 11 लोग मारे गए हैं.
यरुशलम के यहूदी और मुस्लिम लोगों के पवित्र स्थल अल-अक्सा मस्जिद परिसर में इज़राइली सुरक्षा बलों और फ़लस्तीनी नागरिकों के बीच टकराव और फ़लस्तीनी तथा इज़राइली सुरक्षा बलों के संघर्ष के बाद ये घटनाक्रम हुआ है. हिंसा का कारण यरुशलम पर फ़लस्तीन और इज़राइल दोनों द्वारा दावा जताना है.
चार अगस्त को लेबनान की राजधानी बेरूत के एक बंदरगाह पर भयानक विस्फोट हुआ था. इसमें कम से कम 160 लोगों की मौत हुई, जबकि 6,000 से अधिक लोग घायल हो गए थे. साथ ही देश का मुख्य बंदरगाह और शहर का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया. विस्फोट के बाद लेबनान में पिछले दो दिनों से सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे.
विस्फोट लेबनान की राजधानी बेरूत में एक बंदरगाह में हुआ. ऐसा माना जा रहा है कि बंदरगाह के एक वेयरहाउस में बीते छह साल से रखे अमोनियम नाइट्रेट में धमाका होने से यह घटना हुई. देश में दो सप्ताह के लिए आपातकाल लागू किया गया.