वीडियो: जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और राज्य को केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता सज्जाद हुसैन से द वायर के कबीर अग्रवाल की बातचीत.
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म करने और दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के बाद यहां के साढ़े चार सौ से अधिक कारोबारियों, पत्रकारों, वकीलों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक सूची तैयार की है, जिनके विदेश जाने पर रोक लगाई गई है. प्रशासन ने किसी भी व्यक्ति को नहीं बताया है कि यह प्रतिबंध कब तक रहेगा.
जम्मू कश्मीर राज्य के विभाजन के बाद केंद्र सरकार द्वारा जारी नए नक्शों में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद को देश की भौगोलिक सीमा में दिखाया गया है.
केवल एक तानाशाह सरकार विपक्षी नेताओं के किसी राज्य में जाने पर रोक लगाकर विदेशी सांसदों को वहां ले जाती है.
कश्मीर में यूरोपीय सांसदों के दल के दौरे को कथित रूप से फंड देने वाला इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर नॉन-अलाइंड स्टडीज़, श्रीवास्तव समूह का हिस्सा है. इसकी वेबसाइट पर इसके कई कारोबार होने की बात कही गई है. हालांकि दस्तावेज़ ऐसा कोई बिज़नेस नहीं दिखाते, जिससे वे यूरोपीय सांसदों को भारत बुलाने और प्रधानमंत्री से मुलाकात करवाने में समर्थ दिखें.
जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के 89वें दिन भी बंद जारी. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के केंद्र सरकार के कदम को असंवैधानिक क़रार दिया. घाटी में कुछ लोगों ने सरकार पर उनका विशेष दर्जा और पहचान छीनने का आरोप लगाया.
केंद्र सरकार के पांच अगस्त के फैसले के अनुसार जम्मू कश्मीर को विभाजित कर दो केंद्रशासित प्रदेश- जम्मू कश्मीर और लद्दाख बना दिया गया है.
जम्मू कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित क्षेत्र बनाए जाने के बाद अविभाजित जम्मू कश्मीर में लगा राष्ट्रपति शासन बृहस्पतिवार को हटा दिया गया.
बीते पांच अगस्त को मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था. नेशनल कॉन्फ्रेंस की जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बरक़रार रखने की अपील.
केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को ख़त्म किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात जानने के लिए श्रीनगर पहुंचे यूरोपीय दल में शामिल जर्मनी के सांसद निकोलस फेस्ट ने यह बात कही है.
भारत को एक इंटरनेशनल बिज़नेस ब्रोकर के ज़रिये विदेशी सांसदों के कश्मीर आने की भूमिका तैयार करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? जो सांसद बुलाए गए हैं वे धुर दक्षिणपंथी दलों के हैं. इनमें से कोई ऐसी पार्टी से नहीं है जिनकी सरकार हो या प्रमुख आवाज़ रखते हों. तो भारत ने कश्मीर पर एक कमज़ोर पक्ष को क्यों चुना? क्या प्रमुख दलों से मनमुताबिक साथ नहीं मिला?
जम्मू कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर आए यूरोपीय संघ के सांसदों ने कहा कि हमें फासीवादी कहकर हमारी छवि को ख़राब किया जा रहा है.
मामला दक्षिण कश्मीर के कुलगाम ज़िले का है. आतंकवादियों के हमले में मारे गए सभी मजदूर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के थे.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त के प्रवक्ता रूपर्ट कोलविले ने कहा कि हम अत्यंत चिंतित हैं कि कश्मीर में लोग लगातार व्यापक मानवाधिकारों से वंचित हैं और हम भारतीय अधिकारियों से स्थिति को ठीक करने तथा लोगों के अधिकारों को पूरी तरह बहाल करने का आग्रह करते हैं.
ब्रिटेन की लिबरल डेमोक्रेट्स पार्टी के सांसद क्रिस डेविस का कहना है कि कश्मीर यात्रा के लिए उन्हें दिए गए निमंत्रण को भारत सरकार ने वापस ले लिया क्योंकि उन्होंने बिना पुलिस सुरक्षा के स्थानीय लोगों से बात करने की इच्छा जताई थी.