एनएसएसओ रिपोर्ट पर किरकिरी के बाद सरकार मुद्रा योजना से मिले रोज़गार के आंकड़ों को पेश करेगी

नीति आयोग ने गुरुवार को श्रम मंत्रालय से सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू करने और 27 फरवरी को इसके निष्कर्षों को पेश करने को कहा ताकि इसे मार्च के पहले सप्ताह में साझा किया जा सके.

रोज़गार आंकड़ों पर किरकिरी के बाद दोबारा सर्वेक्षण की तैयारी में केंद्र सरकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने कहा कि वास्तविक मुद्दा रोज़गार की संख्या का नहीं बल्कि रोज़गारों की गुणवत्ता और वेतन दरों का है.

क्या प्रधानमंत्री को नहीं पता कि तनाव बोर्ड परीक्षा नहीं बल्कि शिक्षा की हालत के कारण है

देश के सरकारी स्कूलों में दस लाख शिक्षक नहीं हैं. कॉलेजों में एक लाख से अधिक शिक्षकों की कमी बताई जाती है. सरकारी स्कूलों में आठवीं के बच्चे तीसरी की किताब नहीं पढ़ पाते हैं. ज़ाहिर है वे तनाव से गुज़रेंगे क्योंकि इसके ज़िम्मेदार बच्चे नहीं, वो सिस्टम है जिसे पढ़ाने का काम दिया गया है.

शिवसेना का मोदी सरकार से सवाल, आरक्षण तो दे दिया, नौकरियां कहां हैं?

केंद्र और महाराष्ट्र सरकार में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा कि जब सत्ता में बैठे लोग रोज़गार और ग़रीबी दोनों मोर्चो पर विफल होते हैं तब वे आरक्षण का कार्ड खेलते हैं.

प्रधानमंत्री जी! मोबाइल कंपनियां 120 हो गई हैं तो रोज़गार कितनों को मिला?

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया है कि 2014 के पहले देश में मोबाइल बनाने वाली सिर्फ 2 कंपनियां थीं, आज मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों की संख्या 120 हो गई है. सवाल है कि कंपनियों की संख्या 2 से 120 हो जाने पर कितने लोगों को रोज़गार मिला?

अगर 35 लाख लोगों की नौकरी गई है तो मोदी-शाह किन्हें रोज़गार देने की बात कर रहे हैं

उन 35 लाख लोगों को प्रधानमंत्री सपने में आते होंगे, जिनके एक सनक भरे फैसले के कारण नौकरियां चली गईं. नोटबंदी से दर-ब-दर हुए इन लोगों तक सपनों की सप्लाई कम न हो इसलिए विज्ञापनों में हज़ारों करोड़ फूंके जा रहे हैं. मोदी सरकार ने साढ़े चार साल में करीब 5000 करोड़ रुपये इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट के विज्ञापनों पर ख़र्च किए हैं.

राजस्थान: क्या वसुंधरा सरकार 44 लाख युवाओं को नौकरी देने का झूठा दावा कर रही है?

वसुंधरा सरकार कौशल विकास, मुद्रा योजना और सरकारी नौकरी के ज़रिये कुल 44 लाख युवाओं को नौकरी देने का दावा कर रही है, लेकिन इन लोगों की जानकारी उसके पास नहीं है. राजस्थान सरकार के रोज़गार संबंधी दावों पर कैग भी सवाल उठा चुका है.

पत्रकार रवीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए भाषण लिखा है, क्या वे इसे पढ़ सकते हैं?

भाजपा की सरकार ने उच्च शिक्षा पर उच्चतम पैसे बचाए हैं. हमारा युवा ख़ुद ही प्रोफेसर है. वो तो बड़े-बड़े को पढ़ा देता है जी, उसे कौन पढ़ाएगा. मध्य प्रदेश का पौने छह लाख युवा कॉलेजों में बिना प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक के ही पढ़ रहा है. हमारा युवा देश मांगता है, कॉलेज और कॉलेज में टीचर नहीं मांगता है.

रुपया 73 पर, बेरोज़गारी आसमान पर और प्रधानमंत्री इवेंट पर

अनिल अंबानी समूह पर 45,000 करोड़ रुपये का कर्जा है. अगर आप किसान होते और पांच लाख का कर्जा होता तो सिस्टम आपको फांसी का फंदा पकड़ा देता. अनिल अंबानी राष्ट्रीय धरोहर हैं. ये लोग हमारी जीडीपी के ध्वजवाहक हैं. भारत की उद्यमिता की प्राणवायु हैं.

नोटबंदी: न ख़ुदा ही मिला न विसाल ए सनम

सरकार का कहना था कि बंद किए गए नोटों में से लगभग 3 लाख करोड़ मूल्य के नोट बैंकों में वापस नहीं आएंगे और यह काले धन पर कड़ा प्रहार होगा, लेकिन रिज़र्व बैंक मुताबिक अब नोटबंदी के बाद जमा हुए नोटों का प्रतिशत 99 के पार पहुंच गया है. यानी या तो इन नोटों में कोई काला धन था ही नहीं या उसके होने के बावजूद सरकार उसे निकालने में विफल रही.

जब देश में नौकरियां ही नहीं हैं तो क्या आरक्षण देने से नौकरी मिल जाएगी: नितिन गडकरी

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि पिछड़ापन राजनीतिक हित बनता जा रहा है. हर कोई कहता है कि मैं पिछड़ा हुआ हूं. बिहार और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मजबूत स्थिति में हैं. राजनीति में इनका वर्चस्व है. लेकिन ये कहते हैं कि ये पिछड़े हुए हैं.

प्रधानमंत्री ने जनता से 60 महीने मांगे थे, 50 हवाबाज़ी में बिता दिए!

‘चतुर’ प्रधानमंत्री ने चुनाव के लिए निर्धारित समय से पहले ही ख़ुद को अपनी पार्टी के प्रचारक में बदल लिया है. सरकारी तंत्र व समर्थक मीडिया की जुगलबंदी के ज़रिये जनता को यह यकीन करने पर मजबूर किया जा रहा है कि उनकी सरकार खूब काम कर रही है.

संसद में दिए प्रधानमंत्री के भाषण में 2019 के चुनाव के लिए उनकी प्राथमिकताएं साफ दिखती हैं

2019 के आम चुनाव के लिए गांधी परिवार पर लगातार हमले करते हुए ख़ुद को राष्ट्रीय सुरक्षा के एकमात्र प्रहरी के तौर पर पेश करना ही नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा दांव होगा.

मोदी द्वारा ज़ोर-शोर से शुरू की गईं विभिन्न योजनाओं की ज़मीनी हक़ीक़त क्या है?

मोदी सरकार द्वारा बीते चार सालों में बदलाव के बड़े दावों के साथ शुरू की गईं विभिन्न योजनाएं कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर पाने में नाकाम रही हैं.