केंद्र ने अगस्त से दिसंबर के बीच 2.2 अरब टीके उपलब्ध करवाने की बात कही है, पर यह नहीं बताया कि इनमें से कितने देश में बनेंगे और कितने आयात होंगे. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि टीकों की मौजूदा कमी नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच उत्पादकों को वैक्सीन का प्री-ऑर्डर देने में मोदी सरकार की नाकामी का नतीजा है.
राज्यों को स्वतंत्र तौर पर विदेशी कंपनियों से कोविड के टीकों की ख़रीद की अनुमति मिलने के बाद मॉडर्ना और फाइजर ने पंजाब और दिल्ली सरकारों के प्रस्ताव यह कहकर नामंज़ूर कर दिए कि वे सिर्फ केंद्र सरकार से क़रार करेंगी. इसके बाद केंद्र की ओर से कहा गया है कि वे वैक्सीन विनिर्माताओं से बात करेगा.
जॉनसन एंड जॉनसन पर आरोप है कि उसके दोषपूर्ण हिप इंप्लांट के चलते दुनियाभर में ढेरों मरीजों की सेहत पर बुरा असर पड़ा है. अमेरिका में कई मुकदमों के बाद अब कंपनी एक अरब डॉलर का जुर्माना भरेगी, जबकि भारत में यह पीड़ितों को मुआवज़ा देने को तैयार नहीं है.
राजस्थान की एक सरकारी प्रयोगशाला में जांच के दौरान ‘जॉनसन एंड जॉनसन’ कंपनी के शैम्पू में हानिकारक रसायन पाए गए थे, जिसके बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बेबी शैम्पू और पाउडर के सैंपलों का परीक्षण करने को कहा था.
मशहूर फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन पर आरोप है कि उसकी हिप इंप्लांट डिवाइस की वजह से दुनिया भर के कई मरीजों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है. भारत में कंपनी के गलत हिप इंप्लांट डिवाइस की वजह से लगभग 3600 मरीज प्रभावित हुए हैं और कम से कम चार लोगों की मौत हो गई है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट में सामने आया है कि 1971 से 2000 तक कंपनी के बेबी पाउडर की जांच में कई बार कैंसर फैलाने वाला हानिकारक केमिकल एसबेस्टस पाया गया था.
फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने 24 अगस्त 2010 को ही दुनियाभर से अपनी दोषपूर्ण हिप इंप्लांट (कूल्हा प्रतिस्थापन) डिवाइस को वापस ले लिया था लेकिन भारतीय आयातकों ने इस पर प्रतिबंध लगाने और लाइसेंस रद्द करने में करीब दो साल लगा दिए.
22 कैंसर पीड़िताओं ने दर्ज कराई थी शिकायत. अमेरिका में इस संबंध में 9,000 से ज़्यादा शिकायत कंपनी के ख़िलाफ़ दर्ज हैं. कंपनी के पाउडर संबंधी उत्पादों में हानिकारक रसायन एसबेस्टस पाया जाता है.