मीडिया बोल, एपिसोड 33: दलितों पर अत्याचार और बलात्कार

मीडिया बोल की 33वीं कड़ी में उर्मिलेश देशभर में दलितों पर हो रहे अत्याचार और बलात्कार की मीडिया कवरेज पर दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर कौशल पंवार और वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.

बिड़ला-सहारा डायरी और जज लोया केस वर्तमान शासकों को बहुत बेचैन करने वाला है: अरुण शौरी

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अरुण शौरी ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया घटनाक्रम, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मीडिया की दशा पर द वायर से बातचीत की. यह साक्षात्कार ईमेल के ज़रिये किया गया.

मीडिया बोल, एपिसोड 32: न्यायतंत्र की ख़ामियों पर चार शीर्ष जजों के बयान से उठते सवाल

मीडिया बोल की 32वीं कड़ी में उर्मिलेश सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और हिंदुस्तान टाइम्स के सीनियर असिस्टेंट एडिटर भद्रा सिन्हा से चर्चा कर रहे हैं.

मीडिया बोल, एपिसोड 31: भीमा-कोरेगांव हिंसा का कसूरवार कौन?

मीडिया बोल की 31वीं कड़ी में उर्मिलेश महाराष्ट्र में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा पर साकाल ग्रुप के ब्यूरो चीफ अनंत बागाईतकर और नेशनल दस्तक के संपादक शंभू कुमार से चर्चा कर रहे हैं.

मीडिया बोल, एपिसोड 30: मुठभेड़ हत्याओं का नया दौर और मीडिया  

मीडिया बोल की 30वीं कड़ी में उर्मिलेश मुठभेड़ में हत्या करने के दौर और उसके मीडिया कवरेज पर मा​नवाधिकार कार्यकर्ता रवि नायर व वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.

मीडिया बोल, एपिसोड 29: मीडिया के लिए साल 2017 कैसा रहा?

मीडिया बोल की 29वीं कड़ी में उर्मिलेश साल 2017 में मीडिया से जुड़े मसलों और मुश्किलों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रंजॉय गुहा ठाकुरता और स्मिता शर्मा से चर्चा कर रहे हैं.

बनारसीदास चतुर्वेदी, जिन्हें हिंदी के लोगों ने भुला दिया

जयंती विशेष: हिंदी के लोग अब आम तौर पर लेखक और पत्रकार पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी को न याद करते हैं, न ही उनकी पत्रिका ‘विशाल भारत’ को. यहां तक कि उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर भी उन्हें याद नहीं किया जाता.

अयोध्या एक शहर का नाम है जिसमें इंसान रहते हैं

यह वह अयोध्या नहीं है जिसको सार्वजनिक कल्पना में विहिप और भाजपा या दिल्ली के तथाकथित लिबरल्स व मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने स्थापित किया है. यह एक सामान्य शहर है.

अयोध्या विवाद: इस देश की राजनीति धर्मनिरपेक्ष विरासत और संकल्प भूल चुकी है

देश के वामपंथी और समाजवादी बौद्धिकों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का पूरा दारोमदार मंडलवादी और आंबेडकरवादी आंदोलनों पर डाल दिया लेकिन इन आंदोलनों ने देश को इतने भ्रष्ट नेता दिए कि उनके पास धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का नैतिक बल ही नहीं बचा.

गौरी लंकेश की हत्या को संघ परिवार से जोड़ने के आरोप में रामचंद्र गुहा के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज

इतिहासकार गुहा ने ट्वीट किया था, ‘आज के भारत में स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों को प्रताड़ित किया जा रहा, यहां तक कि हत्या कर दी जा रही, लेकिन हमें चुप नहीं किया नहीं जा सकता.'

हत्यारों की भीड़ इस देश की नुमाइंदगी नहीं करती

अंग्रेज़ी प्रभावशाली भाषा है, मगर इसकी पहुंच सीमित है. क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकार असली असर पैदा कर सकते हैं. छोटे शहरों के ऐसे कई साहसी पत्रकार हैं, जिन्होंने अपने साहस की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई है.