बीते महीने एल्गार परिषद मामले के आरोपियों की सूची से फादर स्टेन स्वामी का नाम हटाए जाने की अपील वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के सामने आई थी, जब जस्टिस मोहित-डेरे ने सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया.
दिसंबर 2013 में संतोष अख़्तर नाम के शख़्स ने चाय न बनाने पर अपनी पत्नी पर हथौड़े से हमला कर दिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी. अदालत ने कहा कि सामाजिक स्थितियों के कारण महिलाएं स्वयं को अपने पतियों को सौंप देती हैं, इसलिए इस प्रकार के मामलों में पुरुष स्वयं को श्रेष्ठतर और अपनी पत्नियों को ग़ुलाम समझने लगते हैं.
मामले में अब तक पेश हुए 53 गवाहों में से 35 अपने बयान से पलट चुके हैं.
पत्र में एसोसिएशन ने दावा किया है कि जस्टिस मोहिते डेरे का ट्रांसफर संदेहपूर्ण है क्योंकि वे इस मामले में सीबीआई के रवैये को लेकर लगातार जांच एजेंसी को फटकार चुकी हैं.
तीन हफ़्तों से मामले की सुनवाई कर रहीं जज रेवती मोहिते डेरे ने सीबीआई के कामकाज पर भी नाराज़गी व्यक्त की थी. अब मामले की सुनवाई बॉम्बे हाईकोर्ट की एकल पीठ करेगी.
अदालत ने कहा कि अभियोजन का केस क्या है, यही अब तक स्पष्ट नहीं है. साथ ही सीबीआई बरी किए गए लोगों के ख़िलाफ़ साक्ष्य पेश करने में भी विफल रही है.
मामले में अब तक 30 गवाह बयान से मुकरे. नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि गवाहों को सुरक्षा देना सीबीआई का दायित्व. मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीबीआई से यह भी पूछा कि वह क्यों नहीं चाहती कि मामले की सुनवाई जल्द हो.
सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की अदालती कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी को नौ पत्रकारों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने यह पाबंदी हटा दी. उनकी जीत पत्रकारिता की जीत है.