देश के अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने यह भी कहा कि सरकार जजों की नियुक्ति में देरी नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि किसी मामले की सुनवाई से हटने के संबंध में जज को कोई कारण बताने की जरूरत नहीं है.
हाल ही में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में अपने बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश एसए बोबडे को अपना उत्तराधिकारी बनाने की सिफ़ारिश की थी.
चुनाव आयोग की सिफ़ारिश पर क़ानून मंत्रालय ने 22 अक्टूबर को इस फैसले को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी है. मौजूदा व्यवस्था में सिर्फ सैन्य, अर्ध सैन्य बल के जवानों और विदेशों में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों के अलावा निर्वाचन ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों को ही डाक मत-पत्र से मताधिकार प्राप्त है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस एसए बोबडे के नाम की सिफ़ारिश करते हुए विधि एवं न्याय मंत्रालय को पत्र लिखा है.
क़ानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक उच्च न्यायालयों में 420 न्यायाधीशों की कमी है, जो इस वर्ष अब तक सर्वाधिक है. एक अक्टूबर तक उच्च न्यायालयों में 659 न्यायाधीश थे, जबकि कुल मंज़ूर पद 1079 हैं.
मार्च 2018 से मई 2019 के बीच कुल 5,851.41 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए और इसमें से 4,715.58 करोड़ रुपये के बॉन्ड नई दिल्ली में भुनाए गए.
एसबीआई ने बताया कि मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 के बीच कुल 1,407.09 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे गए थे, जिसमें से 1,403.90 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे.
सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने कहा कि हम सिर्फ नोटिस जारी करके जवाब मांग सकते हैं. हमें किसी पार्टी के पहचान को रद्द करने या उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने का अधिकार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलों को निर्देश दिया है कि 30 मई तक वे चुनावी बॉन्ड की राशि और इसके दानकर्ताओं के नाम समेत सभी जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दें. अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में अंतिम फैसला विस्तृत सुनवाई के बाद लिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड के ख़िलाफ़ याचिका की सुनवाई पूरी, शुक्रवार को आएगा फ़ैसला. सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चुनावी बॉन्ड काले धन पर रोक लगाने के लिए एक प्रयोग है और लोकसभा चुनाव तक अदालत को इसमें दख़ल नहीं देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की याचिका पर हो रही सुनवाई में मोदी सरकार ने बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखने की बात कही, वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि पारदर्शिता के लिए दानकर्ताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि पहले चुनाव आयोग को ये पता चलता था कि 20,000 रुपये से ऊपर का चंदा किसने और किस पार्टी को दिया है. लेकिन, इलेक्टोरल बॉन्ड की वजह से अब ये जानकारी पूरी नहीं मिलती है.
इस साल जनवरी और मार्च में बैंक ने 1,716.05 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे. वहीं, साल 2018 में मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई, अक्टूबर और नवंबर के माह में 1,056.73 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे गए थे.
चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व क़ानून, 1951 में संशोधन करके धारा 58बी शामिल करने की मांग की थी, ताकि राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को रिश्वत देने पर चुनाव को स्थगित या रद्द किया जा सके. लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया.
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