छत्तीसगढ़: आदिवासियों के लिए न्याय पाने की राह इतनी मुश्किल क्यों है

मार्च 2011 में सुकमा ज़िले के तीन गांवों में आदिवासियों के घरों में आग लगाई गई थी. पांच महिलाओं से बलात्कार हुआ और तीन ग्रामीणों की हत्या हुई थी. इसका आरोप पुलिस पर लगा था. सीबीआई की एक रिपोर्ट में भी विवादित पुलिस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी और पुलिस को ज़िम्मेदार बताया गया था, लेकिन हाल ही में विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट बताती है कि मामले में पुलिस को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.

छत्तीसगढ़: आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी 2011 के राजद्रोह मामले में बरी

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले की एक विशेष अदालत ने सोनी सोरी और तीन अन्य को वर्ष 2011 के राजद्रोह के मामले से बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष सोरी और अन्य के ख़िलाफ़ आरोप साबित नहीं कर सका, उसके कई गवाहों ने विरोधाभासी बयान दिए. सोरी पर आरोप था कि वे माओवादियों तक पैसा पहुंचाने का काम करती थीं.

क्यों निर्दोष नागरिकों को सालों-साल क़ैद में रखना चुनावी मुद्दा बनना चाहिए

बड़ी संख्या में नागरिकों, विशेष रूप से हाशिये के समुदायों से आने वालों को बेक़सूर होने के बावजूद एक लंबा समय जेल में बिताना पड़ा है. फिर भी कोई प्रमुख राजनीतिक दल इस मुद्दे को उठाना नहीं चाहता.

सुकमा मुठभेड़: छत्तीसगढ़ सरकार ने मुठभेड़ की स्वतंत्र जांच का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया

छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले में छह अगस्त को हुई मुठभेड़ में पुलिस के 15 नक्सलियों को मारने के दावे पर स्थानीय ग्रामीणों ने सवाल उठाते हुए कहा था कि नक्सलियों के नाम पर निर्दोष आदिवासियों की हत्या की गई है. मामले की स्वतंत्र जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई है.

छत्तीसगढ़: सुकमा मुठभेड़ पर सवाल, नक्सलियों के नाम पर निर्दोष आदिवासियों की हत्या का आरोप

ग्रामीणों का आरोप है कि मुठभेड़ के वक्त मौके पर कोई माओवादी नहीं था बल्कि बड़ी संख्या में पुलिस जवानों को देखकर ग्रामीण भागने और छिपने की कोशिश कर रहे थे जिन पर बिना कुछ कहे और बताए गोलियां बरसा दी गईं. मरने वालों में 6 नाबालिगों के होने का भी दावा है.