रचनाकार का समय: ‘बड़ा लेखक वह जिसने भविष्य को पढ़ लिया’

बड़े लेखक वे हैं, जो समय से पहले घटनाओं की आहट सुन लेते हैं. जो बीत गया उस पर लिखना दृष्टिकोण है, लेकिन आगामी दौर को लिखना वक़्त को थाम लेना है. भविष्य की संभावना को दर्ज करना ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्योंकि कई बार आज को दर्ज करना रचनाओं को कमज़ोर कर देता है. 'रचनाकार का समय' स्तंभ की तीसरी क़िस्त.

रचनाकार का समय: मैं ख़ुद को बचाने के लिए लिखता हूं

यह लेखक के लिए हताश करने वाला समय है, मुश्किल समय है. सच लिखना शायद इतना जोखिम भरा कभी नहीं था जितना अब है. सच को पहचानना भी लगातार मुश्किल होता गया है.

रचनाकार का समय: मैं ‘टाइम-ट्रेवल’ करने के लिए लिखती और पढ़ती हूं   

इस सप्ताह से हम एक नई श्रृंखला शुरू कर रहे हैं जिसके तहत रचनाकार समय के साथ अपने संवाद को दर्ज करते हैं. पहली क़िस्त में पढ़िए प्रकृति करगेती का आत्म-वक्तव्य: त्रिकाल जब एक संधि पर आकर ठहर जाता है.

अगम बहै दरियाव: जीवन की साधारणता का आख्यान

पुस्तक-समीक्षा: शिवमूर्ति के 'अगम बहै दरियाव' को आंचलिक उपन्यास के खांचे में रखकर देखना उसे न्यून करना होगा. इसे एक सामाजिक-राजनीतिक समझ पैदा करने वाला संवेदनशील उपन्यास माना जाना चाहिए, जिसे इसके नायकों- किसानों और मजदूरों, दलित-पिछड़ों-स्त्रियों- के त्रासद संघर्ष के रूप में पिरोकर बयां किया गया है.

शती के अवसर पर मूर्धन्‍यों की स्मृति

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: 2024 मूर्धन्य चित्रकारों सूज़ा, रामकुमार, वासुदेव गायतोंडे और केजी सुब्रमण्यन का जन्मशती वर्ष हैं. उन्हें याद करना, उनके प्रति आलोचनात्म्क कृतज्ञता व्यक्त करना हमारी कलात्मक-नैतिक ज़िम्मेदारी है.

मुक्तिबोध स्मरण: ख़ुद को लगातार बदलने की कोशिश स्वतंत्रता का उद्गम है

मार्क्सवादी मुक्तिबोध के लिए आत्म-संशोधन हमेशा चलने वाली प्रक्रिया है. ज़ाहिर है, यह संशोधन सबके बस की बात नहीं और जो इंसान इससे गुजरता है, वह मामूली नहीं.

‘ऑर्बिटल’ को मिला बुकर साहित्य की दुनिया में बदलाव की बानगी है

हार्वे ने सृष्टि की असाधारण सुंदरता और वैचित्र्य से प्रभावित होकर यह उपन्यास रचा है. हार्वे चाहती थीं कि उनके इस उपन्यास को सुंदरता और प्रेम के साथ किसी नायाब चीज पर लिखी गयी किताब के रूप में पढ़ा जाए. बुकर समिति ने उनकी इस आकांक्षा को साकार कर दिया है.  

हान कांग साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली दक्षिण कोरियाई लेखक

‘हान’ दक्षिण कोरियाई भाषा का एक प्रतिनिधि शब्द है. यह उन तमाम संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करता है जिन्हें कोरिया अपनी पहचान का प्रतीक मानता है.

‘काफ़्का को लगता था कि उनके भीतर कोई पशु बैठा है’

पुस्तक अंश: यह किताब काफ़्का के जीवन की हर महत्वपूर्ण घटना को उसके अथक रचनाकर्म के साथ जोड़कर देखती है और एक तटस्थ, पैनी निगाह के साथ उसके लेखन के मर्म को थामकर पाठक के सामने धर देती है.

आज की तारीख़ में गांधी

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय गांधी सच्चे प्रतिरोध, प्रगतिशीलता, अध्यात्म और सच-प्रेम-सद्भाव-न्याय पर आधारित राजनीति के सबसे उजले प्रतीक हैं. उनकी मूल्यदृष्टि को पुनर्नवा कर भारत की बहुलता, उसकी आत्मा और अंतःकरण बचाए जा सकते हैं.

रामचंद्र गुहा को लेखक किसने बनाया?

वीडियो: इतिहासकार रामचंद्र गुहा की हालिया किताब 'द कुकिंग ऑफ बुक्स' और उनके विलक्षण संपादक रुकुन आडवाणी के बारे में द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज के साथ उनका संवाद.

बिना अनुभवों की साझेदारी के जनतांत्रिकता मुमकिन नहीं

अंतरराष्ट्रीयता का मेल हुए बिना राष्ट्रवाद एक संकरी ज़हनीयत का दूसरा नाम होगा जिसमें हम अपने दड़बों में बंद दूसरों को ईर्ष्या और प्रतियोगिता की भावना के साथ ही देखेंगे. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 34वीं और अंतिम क़िस्त.

मंज़ूर एहतेशाम की ‘तमाशा’ अभाव और भव्यताहीन साधारण जीवन का चिर-परिचित सच है

कला हो या जीवन दोनों ही बस अंततः सफल हो जाने वाले नायकों के गुणगान गाते हैं. मंज़ूर एहतेशाम की कहानी ‘तमाशा’ इसके विपरीत संघर्षों में बीत जाने वाले जीवन की कहानी है, बिना किसी परिणाम की प्राप्ति के.

भारतीय समाज में हिंसा के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पांचेक दशक पहले गुंडई को अनैतिक माना जाता था और समाज में उसकी स्वीकृति नहीं थी. आज हम जिस मुक़ाम पर हैं उसमें गुंडई को लगभग वैध माना जाने लगा है- उस पर न तो ज़्यादातर राजनीतिक दल आपत्ति करते हैं, न ही मीडिया.

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