महिला दिवस विशेष: साहित्य में स्त्री दृष्टि निजी मुक्ति का नहीं बल्कि सामूहिक मुक्ति का आख्यान रचती है, इसीलिए ज़्यादा समावेशी है और अपने वृत्त में पूरी मानवता को समेट लेती है.
दिल्ली विश्वविद्यालय शैक्षणिक परिषद ने पिछले महीने बीए के अंग्रेज़ी ऑनर्स पाठ्यक्रम में बदलावों को मंज़ूरी देते हुए महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ सहित दो दलित महिला लेखकों बामा और सुकीरथरिणी की कृतियों को हटा दिया था. इन्हें पाठ्यक्रम में वापस शामिल करने की मांग के साथ 1,150 से अधिक शिक्षाविदों, लेखकों और संगठनों ने संयुक्त बयान जारी किया है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी शैक्षणिक परिषद ने मंगलवार को 12 घंटे चली बैठक में सदस्यों की असहमति को ख़ारिज करते हुए 2022-23 सत्र से राष्ट्रीय शिक्षा नीति और चार साल के स्नातक के क्रियान्वयन को मंज़ूरी दे दी. शैक्षणिक परिषद के सदस्य ने बताया कि दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को भी सिलेबस से हटाया गया है.
वैसे यह देश सुबह-शाम तक स्त्री महिमा का गायन करता है, लेकिन सच में यहां की न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, मीडिया और जन लोक... सबके सब पूरी ताक़त से स्त्रियों के विरोध में जुट पड़ते हैं. फिर भले वह सोनिया हो, वसुंधरा राजे हो या फिर ममता बनर्जी... वे विवेकहीन लोक का प्रहार झेलती ही हैं.