दिल्ली यूनिवर्सिटी के बीए के पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ हटाई गई

दिल्ली यूनिवर्सिटी शैक्षणिक परिषद ने मंगलवार को 12 घंटे चली बैठक में सदस्यों की असहमति को ख़ारिज करते हुए 2022-23 सत्र से राष्ट्रीय शिक्षा नीति और चार साल के स्नातक के क्रियान्वयन को मंज़ूरी दे दी.  शैक्षणिक परिषद के सदस्य ने बताया कि दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को भी सिलेबस से हटाया गया है.

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दिल्ली यूनिवर्सिटी. (फोटो: विकीमीडिया)

दिल्ली यूनिवर्सिटी शैक्षणिक परिषद ने मंगलवार को 12 घंटे चली बैठक में सदस्यों की असहमति को ख़ारिज करते हुए 2022-23 सत्र से राष्ट्रीय शिक्षा नीति और चार साल के स्नातक के क्रियान्वयन को मंज़ूरी दे दी.  शैक्षणिक परिषद के सदस्य ने बताया कि दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को भी सिलेबस से हटाया गया है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी. (फोटो: विकिमीडिया)

नई दिल्लीः दिल्ली यूनिवर्सिटी शैक्षणिक परिषद ने मंगलवार को बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में बदलावों को मंजूरी देते हुए महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ को पाठ्यक्रम से हटा दिया.

परिषद ने मंगलवार को 12 घंटे लंबी बैठक में सदस्यों की असहमति को खारिज करते हुए 2022-2023 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और चार साल के अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम (एफवाईयूपी) के क्रियान्वयन को भी मंजूरी दी.

शैक्षणिक मामलों की स्थाई समिति ने सोमवार को अपनी बैठक में 2022-2023 से एनईपी के क्रियान्वयन को मंजूरी दी थी.

कुछ सदस्यों का कहना है कि परिषद के एक वर्ग के विरोध के बावजूद बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी के पांचवें सेमेस्टर के पाठ्यक्रम और एनईपी को मंजूरी दी गई.

अब इस मामले पर यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद में चर्चा की जाएगी.

डीयू सूत्रों का कहना है कि शैक्षणिक परिषद के 14 सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी के पाठ्यक्रमों में बदलाव पर असहमति जताई थी.

दरअसल पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ को हटा दिया गया है. पाठ्यक्रमों से संबंधित निगरानी समिति ने पहले भी पाठ्यक्रम में कुछ बदलावों का सुझाव दिया था, जिसका बैठक में विरोध किया गया था.

शैक्षणिक परिषद के सदस्य मिठूराज धूसिया ने कहा, ‘हम निरीक्षण समिति के इस फैसले का कड़ा विरोध करते हैं, जिन्होंने मनमाने ढंग से फैकल्टी, कोर्स कमेटी और स्थाई समिति जैसे वैधानिक निकायों को दरकिनार करते हुए पाचवें सेमेस्टर के लिए नए अंडरग्रैजुएट लर्निंग आउटकम्स बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (एलओसीएफ) पाठ्यक्रम में बदलाव किए हैं.’

उन्होंने कहा कि दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को मनमाने ढंग से हटा दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘एक आदिवासी महिला की महाश्वेता देवी की कहानी द्रौपदी को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया गया. यह जानकर हैरानी हुई कि निगरानी समिति में संबंधित विभागों से कोई विशेषज्ञ नहीं थे, जिनका पाठ्यक्रम बदल दिया गया था. इस तरह पाठ्यक्रम से इन्हें हटाए जाने के पीछे कोई तर्क नहीं है.’

उन्होंने कहा कि मल्टीपल एंट्री एंड एग्जिट स्कीम्स (एमईईएस) या अन्य एजेंडा मदों के साथ चार साल के अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम (एफवाईयूपी) के मामले पर शैक्षणिक परिषद में पर्याप्त चर्चा की अनुमति नहीं थी.

उन्होंने कहा, ‘इस दौरान मतदान की अनुमति नहीं दी गयी थी और निर्वाचित सदस्यों को असहमति नोट जमा करने के लिए कहा गया था. यह वैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन है. स्थाई समिति में 27 सदस्यों के साथ चर्चा 100 से अधिक सदस्यों के साथ शैक्षणिक परिषद में हुई चर्चा के समान नहीं है.’

उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि एफवाईयूपी मॉडल को लेकर डीयू प्रशासन में विश्वास की कमी है और वह इन महत्वपूर्ण मुद्दो से निपटने से बच रहे हैं.

नोट में कहा गया, ‘हालांकि, डीयू ने 20 फरवरी 2021 को डीयू की वेबसाइट पर रिपोर्ट अपलोड कर दी थी, जिसमें रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने के लिए नहीं कहा गया.’

स्थाई समिति और फिर शैक्षणिक परिषद को हितधारकों से फीडबैक के साथ एनईपी क्रियान्वयन समिति की सिफारिशों पर विचार-विमर्श करना चाहिए.

इस रिपोर्ट को शैक्षणिक परिषद के पास ले जाने से पहले सभी वैधानिक निकायों जैसे पाठ्यक्रमों की समितियों, कर्मचारी परिषदों, संकायों आदि के पास चर्चा के लिए भेजा जाना चाहिए.

नोट में यह भी कहा गया कि शैक्षणिक वर्ष 2022-2023 को एनईपी 2020 को लागू करने के तौर पर निर्धारित करना आधारहीन है क्योंकि इस पर सभी हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चा और व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत है.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)