राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक़, वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.8 फीसदी रही. हालांकि, विशेषज्ञों का दावा है कि भारत के आधिकारिक जीडीपी आंकड़े भ्रामक हैं.
बजट 2023-24 का लोकलुभावनवाद यह है कि यह दिखने में तो समाज के हर वर्ग, चाहे वे स्त्रियां हों, जनजातियां, दलित, किसान या फिर सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम, को कुछ न कुछ देने की बात करता है, लेकिन घोषणाओं का तभी कोई अर्थ होता है, जब हर किसी के लिए लिए पर्याप्त फंड का आवंटन भी हो.
बजट को चाहे जितना भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए, नरेंद्र मोदी के सत्ता में नौ साल की विरासत मैन्युफैक्चरिंग, निजी निवेश और रोज़गार में ठहराव की है. हाल के दिनों में बढ़ती महंगाई एक अतिरिक्त समस्या बन गई है.
इस साल फरवरी के बाद थोक मुद्रास्फीति का यह सबसे ऊंचा आंकड़ा है. फरवरी में यह 2.26 प्रतिशत पर थी. सितंबर में थोक मुद्रास्फीति 1.32 प्रतिशत और पिछले साल अक्टूबर में शून्य पर थी.
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद पर लॉकडाउन का सबसे गहरा असर दिख सकता है. वहीं, मध्य प्रदेश, पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इसका असर सबसे कम रह सकता है.
केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी के बाद लागू लॉकडाउन के दौरान लगातार दूसरे महीने खुदरा मुद्रास्फीति के आंशिक आंकड़े जारी किए. मई 2019 में खाद्य महंगाई दर 1.83 फीसदी थी.
अगले छह महीनों में विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था में अधिक तेज़ी से होने वाले जिस सुधार को लेकर प्रधानमंत्री इतने आश्वस्त हैं, वह भारी-भरकम सरकारी ख़र्च के बिना असंभव लगता है. अर्थव्यवस्था को इतना नुकसान पहुंचाया जा चुका है कि सुधार की कोई कार्य योजना पेश करने से पहले गंभीरता से इसका अध्ययन करना ज़रूरी है.
ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन द्वारा कराया गया ये सर्वे एमएसएमई, स्व-रोजगार, कॉरपोरेट सीईओ और कर्मचारियों से प्राप्त कुल 46,525 जवाबों पर आधारित है.
सूक्ष्म,लघु और मध्यम उपक्रम यानी एमएसएमई क्षेत्र के लिए सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपये के गारंटी फ्री लोन का ऐलान किया है. उम्मीद की जा रही है कि यह बेरोज़गारी के संकट को ख़त्म करने में मददगार साबित होगा और बाज़ार में मांग पैदा करेगा, लेकिन इस क्षेत्र के हालात ऐसे नहीं है कि सिर्फ एक लोन पैकेज से तस्वीर बदल जाए.
चीन में कामगारों के बढ़ते वेतन और अमेरिका के साथ इसके ट्रेड वॉर के बाद कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने वहां से अपने मैन्युफैक्चरिंग बेस शिफ्ट करने शुरू कर दिए थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अप्रैल 2018 से लेकर अगस्त 2019 के बीच ऐसी कंपनियों में से सिर्फ तीन ही भारत आईं.
आईएचएस मार्किट इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स सूचकांक अप्रैल में गिरकर 27.4 अंक रह गया. इस सूचकांक का 50 अंक से ऊपर रहना कारोबारी गतिविधियों में विस्तार, जबकि उसके नीचे रहना गतिविधियों के कमजोर पड़ने को दर्शाता है.
प्याज सहित अन्य सब्जियों, दाल और मांस, मछली जैसी प्रोटीन वाली वस्तुओं के दाम चढ़ने से नवंबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 5.54 प्रतिशत पर पहुंच गई थी.
बिजली, खनन और विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन के कारण औद्योगिक उत्पादन अक्टूबर महीने में 3.8 प्रतिशत घट गया. एक साल पहले इसी माह में इसमें 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर महीने में पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन 20.7 प्रतिशत घटा जबकि एक साल पहले इसी महीने में इसमें 6.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. वहीं, विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 3.9 प्रतिशत, बिजली क्षेत्र का उत्पादन 2.6 प्रतिशत घट गया.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से दिए गए आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 1.2 प्रतिशत घट गया. बिजली क्षेत्र का उत्पादन 0.9 प्रतिशत नीचे आया. टिकाऊ उपभोक्ता सामान क्षेत्र का उत्पादन भी 9.1 प्रतिशत घट गया.