बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आनंद तेलतुम्बड़े की अग्रिम ज़मानत संबंधी याचिका पर सुनवाई 11 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी.
पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा के बावजूद शनिवार को आनंद तेलतुम्बड़े को गिरफ्तार कर लिया था.
भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते 14 जनवरी को दलित शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी थी.
सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े को एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में आरोपी बनाया गया है.
राजतंत्र हम सबको इतना मूर्ख समझ रहा है कि हम विश्वास कर लेंगे कि सामाजिक कार्यकर्ता इस देश में हिंसा की साज़िश कर रहे हैं. यह कहने वाले वे हैं जो दिन-रात मुसलमानों, ईसाईयों और सताए जा रहे लोगों के हक़ में काम करने वालों को शहरी माओवादी कहकर नफ़रत और हिंसा भड़काते रहते हैं.
पुणे की एक अदालत ने कुछ शर्तों के साथ मिलिंद एकबोटे को राहत दी है. हिंसा के संबंध में एक दलित महिला द्वारा शिकायत के बाद एससी/एसटी एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार दक्षिणपंथी नेता संभाजी भिड़े और उनके संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ छह मामले दर्ज किए गए थे. इसके अलावा भाजपा और शिवसेना नेताओं के ख़िलाफ़ दर्ज मामले भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा वापस लिए गए.
भीमा कोरगांव हिंसा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साज़िश रचने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के बाद से एल्गार परिषद चर्चा में है. एल्गार परिषद के माओवादी कनेक्शन समेत तमाम दूसरे आरोपों पर इसके आयोजक और बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल का पक्ष.
सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हालिया कार्रवाई के ख़िलाफ़ जो जनाक्रोश उभरा है उसमें ‘नक्सल’ शब्द और इसके पीछे के ठोस ऐतिहासिक संदर्भों को बार-बार सामने रखना ज़रूरी है ताकि यह शब्द महज़ एक आपराधिक प्रवृत्ति के तौर पर ही न देखा जाए बल्कि इसके पीछे मौजूद सरकारों की मंशा भी उजागर होती रहे.
दलितों और पिछड़ों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर, उन पर ‘माओवादी’ का लेबल लगाकर सरकार दलित महत्वकांक्षाओं का अपमान करती है, साथ ही दूसरी ओर दलित मुद्दों के प्रति संवेदनशील दिखने का स्वांग भी रचती है.
वीडियो: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में देश के विभिन्न हिस्सों से हुई सामाजिक कार्यकताओं की गिरफ्तारी पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन से मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.
जैसे-जैसे 2019 आम चुनाव क़रीब आ रहे हैं, एक नई कहानी को बढ़ावा दिया जा रहा है- कि दुश्मन देश के अंदर ही हैं और ये न केवल सरकार और उसकी नीतियों, बल्कि देश के ही ख़िलाफ़ हैं.
जन गण मन की बात की 296वीं कड़ी में विनोद दुआ नोटबंदी पर आरबीआई की हालिया रिपोर्ट और भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं पर चर्चा कर रहे हैं.
अदालत ने भीमा-कोरेगांव हिंसा के करीब नौ महीने बाद हुई गिरफ़्तारियों पर महाराष्ट्र पुलिस से सवाल करते हुए गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक जेल न भेजते घर में ही नज़रबंद रखने का आदेश दिया है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महाराष्ट्र के पुलिस प्रमुख को भी नोटिस जारी किया है. आयोग ने कहा है कि प्रतीत होता है कि पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी में नियमों का ठीक तरीके से पालन नहीं किया गया है. वहीं, गौतम नवलखा को महाराष्ट्र पुलिस ने दस्तावेजों की अनूदित प्रति उपलब्ध करा दी है.