विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए एयर इंडिया के 64 विमानों और नौसेना के दो पोतों के साथ वंदे भारत मिशन शुरू. खाड़ी देशों में फंसे तीन लाख से अधिक भारतीयों ने वापसी के लिए कराया रजिस्ट्रेशन.
गृह मंत्रालय की ओर से कुछ शर्तों के साथ के साथ ग्रीन, ऑरेंज और रेड ज़ोन में शराब की दुकानें खोलने की भी अनुमति दी गई है. संक्रमित क्षेत्रों में इसकी अनुमति नहीं होगी.
सरकार की ओर से कोरोना वायरस संक्रमण के आधार पर बांटे गए रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन के आधार पर विशेष गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दी गई है.
कोरोना वायरस से सुरक्षा के मद्देनज़र यह तीसरी बार है, जब सरकार ने लॉकडाउन की समयसीमा बढ़ा दी है. पहले चरण में 25 मार्च से 14 अप्रैल तक लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, जिसे बाद में बढ़ाकर तीन मई कर दिया गया था.
लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने संबंधी गृह मंत्रालय की अधिसूचना को नागरीका एक्सपोर्ट्स और फिक्स पैक्स प्राइवेट लिमिटेड सहित तीन निजी कंपनियों ने चुनौती दी है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह आकलन ऐसे समय में सामने आया है, जब अहमदाबाद नगर निगम ने कहा कि यदि मामलों के दुगुनी होने की मौजूदा दर जारी रहती है, तो शहर में कोविड-19 के मरीजों की संख्या मई के अंत तक बढ़ कर आठ लाख हो सकती है.
विश्व बैंक की ‘प्रवासी के नजरिये से कोरोना वायरस संकट’ नामक रिपोर्ट के अनुसार आंतरिक प्रवास की तादाद अंतरराष्ट्रीय प्रवास के मुकाबले करीब ढाई गुना है. विश्व बैंक ने कहा कि सरकारों को नकदी हस्तांतरण तथा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के जरिए इनकी मदद करनी चाहिए.
अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट में विश्व बैंक ने कहा कि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अंतर्देशीय यात्री परिवहन साधनों पर रोक की घोषणा और इसे लागू करने के बीच एक दिन से भी कम समय लगा जिससे अव्यवस्था उत्पन्न हो गई.
संगठन के मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से मजदूर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है.
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2006 से 2016 के बीच 27.1 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर आए हैं, लेकिन अब लॉकडाउन के चलते कई लोगों की ज़िंदगी अधर में है. इसके चलते हज़ारों लोग बेरोज़गार हुए है और अपने गांव-क़स्बों की ओर लौटने को मजबूर हैं.
एक जनहित याचिका में शहरों से पलायन न करने वाले कामगारों को पारिश्रमिक दिए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे बताया गया है कि ऐसे कामगारों को आश्रय गृहों में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और ऐसी स्थिति में उन्हें पैसे की क्या जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से रोज़गार गंवाने वाले लाखों कामगारों के लिए जीने के अधिकार लागू कराने की आवश्यकता है. सरकार के 25 मार्च से 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद ये कामगार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि सभी नियोक्ता, चाहे वह उद्योग में हों या दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में, लॉकडाउन की अवधि में अपने श्रमिकों के वेतन का भुगतान बिना किसी कटौती के करेंगे.
गृह मंत्रालय ने बताया कि ये अधिकारी लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य व सुरक्षा को सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं. ड्यूटी में घोर लापरवाही बरतने की वजह से अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई.
इन समितियों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे कोरोना महामारी से विभिन्न क्षेत्रों में खड़ी हुई समस्याओं की पहचान कर उसका प्रभावी समाधान निकालेंगे.